दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि अग्रिम जमानत देना “असाधारण शक्ति” है, जिसका उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। अदालत ने संपत्ति विवाद के मामले में अपने चचेरे भाई पर हमले के आरोपी आशिष कुमार को यह राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा ने 1 जुलाई को पारित आदेश में कहा कि आरोपी की हिरासत में पूछताछ जरूरी है, ताकि घटना में प्रयुक्त कथित हथियार की बरामदगी की जा सके।
अदालत ने कहा, “अग्रिम जमानत प्रदान करने की शक्ति एक असाधारण शक्ति है, जिसका प्रयोग केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए, न कि सामान्य नियम के तौर पर।” न्यायालय ने आगे कहा, “कानून केवल उनका साथ देता है जो कानून का पालन करते हैं।”

आशिष कुमार पर आरोप है कि उन्होंने अपने चचेरे भाई के साथ उस समय मारपीट की जब दोनों के बीच पारिवारिक संपत्ति पर अवैध निर्माण को लेकर विवाद हुआ। शिकायत में कहा गया है कि कुमार ने रसोई बनाए जाने पर आपत्ति जताई और विवाद के दौरान अपने भाई पर हमला कर दिया। पीड़ित को मामूली लेकिन इलाज योग्य चोटें आईं।
प्रोसीक्यूशन की ओर से दलील दी गई कि कुमार ने जांच में सहयोग नहीं किया और उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किए जा चुके हैं। अदालत ने इस असहयोग को अग्रिम जमानत न देने के मुख्य कारणों में से एक माना।
वहीं, बचाव पक्ष ने कहा कि कुमार को झूठे आरोप में फंसाया गया है और झगड़े की शुरुआत शिकायतकर्ता ने की थी। उन्होंने यह भी कहा कि घटना में खुद कुमार और उनकी मां को भी चोटें आईं, लेकिन कोई क्रॉस एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज करते हुए पाया कि यह मामला अग्रिम जमानत देने लायक नहीं है और आरोपी की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।