खाद्य सुरक्षा अधिकारी पद के लिए फ़िज़ियोथेरेपी में स्नातक डिग्री को ‘मेडिसिन में डिग्री’ के समकक्ष नहीं माना जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्णय दिया है कि फ़िज़ियोथेरेपी में स्नातक डिग्री (Bachelor’s Degree in Physiotherapy) को ‘मेडिसिन में डिग्री’ (Bachelor’s Degree in Medicine) के समकक्ष नहीं माना जा सकता, जैसा कि उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (खाद्य सुरक्षा संवर्ग) (ग्रुप A, B और C) सेवा नियमावली, 2012 में खाद्य सुरक्षा अधिकारी (Food Safety Officer) के पद हेतु निर्धारित है। न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने यह निर्णय 4 जुलाई 2025 को पारित करते हुए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता संध्या यादव ने 14 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा विज्ञापित विज्ञापन संख्या A-2/E-1/2014 के तहत खाद्य सुरक्षा अधिकारी पद हेतु आवेदन किया था। लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें 19 दिसंबर 2014 को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। हालांकि, साक्षात्कार के दिन यह कहते हुए भागीदारी से रोक दिया गया कि उनके पास मेडिसिन में स्नातक डिग्री नहीं है।

इसके विरुद्ध उन्होंने यह कहते हुए याचिका दाखिल की कि इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (यूजीसी से मान्यता प्राप्त) से प्राप्त फ़िज़ियोथेरेपी में उनकी डिग्री को मेडिसिन की डिग्री के समकक्ष माना जाना चाहिए।

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याचिकाकर्ता की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अशोक खरे ने याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि फ़िज़ियोथेरेपी एक चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) की शाखा है जिसमें जनरल सर्जरी, न्यूरोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स और पुनर्वास (Rehabilitation) जैसे विषयों का गहन अध्ययन शामिल है। उन्होंने मार्च 2014 के यूजीसी अधिसूचना का उल्लेख किया जिसमें फ़िज़ियोथेरेपी को “मेडिसिन एंड सर्जरी / आयुर्वेद / यूनानी / होम्योपैथी / हेल्थ एंड एलाइड साइंसेज़ / पैरामेडिकल / नर्सिंग” के दायरे में शामिल किया गया था।

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उन्होंने यह भी कहा कि आयोग ने आवेदन स्वीकार कर परीक्षा में बैठने की अनुमति दी, फिर साक्षात्कार से वंचित करना अनुचित था। इसके साथ ही उन्होंने Smita Shrivastava v. State of Madhya Pradesh, 2024 SCC OnLine SC 764 मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भी भरोसा किया, जिसमें न्यायालयों की संवैधानिक जिम्मेदारी को रेखांकित किया गया है।

प्रतिवादियों की दलीलें

राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से अधिवक्ता श्री निशीथ यादव ने तर्क दिया कि 2012 सेवा नियमों में प्रयुक्त “मेडिसिन में डिग्री” शब्द का अर्थ भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) द्वारा मान्यता प्राप्त MBBS डिग्री है।

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उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार, खाद्य सुरक्षा आयुक्त और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) सभी ने स्पष्ट किया है कि केवल MBBS डिग्री ही ‘मेडिसिन में डिग्री’ के रूप में मान्य है।

श्री यादव ने Anoop Kumar v. State of U.P. तथा Km. Pratima Gupta v. State of U.P. मामलों का हवाला देते हुए कहा कि अर्हता की समतुल्यता का निर्धारण न्यायालयों का नहीं बल्कि विशेषज्ञों और नियुक्ति प्राधिकरण का विषय है।

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायालय ने 2012 सेवा नियमों के नियम 8 का उल्लेख किया, जिसमें “मेडिसिन में डिग्री” अथवा केंद्र सरकार द्वारा समकक्ष मान्यता प्राप्त डिग्री की आवश्यकता बताई गई है। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की डिग्री को MCI द्वारा मेडिकल डिग्री के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है, अतः वह वैधानिक आवश्यकता पूरी नहीं करती।

न्यायालय ने कहा:

“नियमों में निर्धारित अर्हता की समतुल्यता प्रदान करना विशेषज्ञों का कार्य है और राज्य सरकार ही इस विषय में स्वविवेक से निर्णय लेने के लिए अधिकृत है।”

न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने यह भी स्पष्ट किया:

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“यदि किसी पाठ्यक्रम को मेडिकल साइंस की डिग्री देने हेतु मान्यता प्राप्त नहीं है… तो याचिकाकर्ता की अर्हता सेवा भर्ती नियमावली, 2012 के तहत आवश्यक अर्हता नहीं मानी जा सकती।”

निर्णय

न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए निर्णय में कहा:

“याचिकाकर्ता के पास फ़िज़ियोथेरेपी में स्नातक की डिग्री है, जो ‘मेडिसिन में स्नातक डिग्री’ नहीं है। अतः यह सेवा भर्ती नियमावली, 2012 के तहत आवश्यक शैक्षणिक अर्हता नहीं मानी जा सकती।”

इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि 2014 के विज्ञापन के तहत चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब उसे पुनः खोला नहीं जा सकता।

मामला: संध्या यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: रिट-ए नं. 5667 ऑफ 2015

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