छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मंदिर की संपत्ति पर पुजारी को भूमि स्वामी (भूमिस्वामी) नहीं माना जा सकता। पुजारी केवल देवता की ओर से पूजा करने हेतु नियुक्त एक प्रबंधक होता है और उसे संपत्ति पर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं होता। यह निर्णय न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु ने संविधान के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत दायर एक याचिका पर सुनाया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता पुजारी परिषद समिति, अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा के माध्यम से, ने 03.10.2015 को राजस्व मंडल, बिलासपुर द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश राजस्व पुनरीक्षण वाद संख्या R.N./R/04/A-20(3)/389/2012 में पारित हुआ था, जिसमें मंडल ने याचिकाकर्ता की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी।
विवाद की शुरुआत तहसीलदार के समक्ष की गई एक आवेदन से हुई थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने स्वयं का नाम ट्रस्ट रिकॉर्ड में दर्ज करने की मांग की थी। तहसीलदार द्वारा पक्ष में आदेश दिया गया, लेकिन एसडीओ ने उसे रद्द कर दिया। इसके विरुद्ध की गई अपील अपर आयुक्त, रायपुर के समक्ष अस्वीकृत हुई, और पुनः राजस्व मंडल के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की गई, जिसे खारिज कर दिया गया।

पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि तहसीलदार का आदेश न्यायसंगत था और बाद की सभी राजस्व अधिकारियों ने तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा। यह भी कहा गया कि राजस्व मंडल ने 06.11.1985 के एक पुराने आदेश को ध्यान में नहीं रखा।
प्रतिवादी की ओर से आपत्ति जताई गई कि याचिकाकर्ता का इस आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह मूल वाद में पक्षकार नहीं था। साथ ही यह तर्क भी दिया गया कि वर्तमान याचिका में उल्लिखित याचिकाकर्ता और पूर्व में राजस्व मंडल के समक्ष उपस्थित पक्ष अलग हैं।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि विंध्यवासिनी मंदिर ट्रस्ट समिति 23.01.1974 से विधिवत रूप से पंजीकृत संस्था है, और वही मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन करती है। उन्होंने 21.09.1989 को सिविल जज क्लास-II, धमतरी द्वारा पारित एक निर्णय का उल्लेख किया जो अंतिम रूप से प्रभावी हो चुका है।
इस निर्णय में सिविल न्यायालय ने कहा था:
“विंध्यवासिनी ट्रस्ट समिति 23.01.1974 से विधिवत रूप से पंजीकृत संस्था है और मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन करती है। ट्रस्ट के संविधान के अनुसार, ट्रस्टी बहुमत से एक प्रबंधक नियुक्त कर सकते हैं और संपत्ति का नियंत्रण ट्रस्ट के पास है। यह नहीं कहा जा सकता कि मंदिर की संपत्ति किसी विशेष व्यक्ति की है या पुजारियों के पूर्वजों की है।”
हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया:
“पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने हेतु नियुक्त एक ग्राही (grantee) होता है, और यदि वह सौंपा गया कार्य, यानी पूजा करना, नहीं करता तो यह अधिकार वापस लिया जा सकता है। अतः उसे भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता।”
न्यायालय ने आगे कहा:
“यदि पुजारी मंदिर की संपत्ति पर स्वामित्व का दावा करता है, तो यह कुप्रबंधन की श्रेणी में आएगा और वह पुजारी बने रहने के योग्य नहीं होगा।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि वर्तमान याचिकाकर्ता उस आदेश का पक्षकार नहीं था जिसे चुनौती दी गई है, अतः उसे याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।
इस आधार पर न्यायालय ने कहा:
“संविधान के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत दायर यह रिट याचिका बिना किसी वैधानिक आधार के है और इसे खारिज किया जाता है। पक्षकार अपने-अपने खर्च वहन करेंगे।”
श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता पुजारी परिषद समिति बनाम विंध्यवासिनी मंदिर ट्रस्ट समिति
वाद संख्या: डब्ल्यूपी227/58/2016