झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार शामिल थे, ने यह स्पष्ट किया है कि विधवा बहू अपने ससुर और देवर से हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 19 और 22 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है, बशर्ते कि वह स्वयं अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हो और अन्य वैधानिक शर्तें पूरी हों। यह निर्णय जामताड़ा के पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर प्रथम अपील में आया, जिसमें विधवा और उसके दो नाबालिग बच्चों को मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
पृष्ठभूमि:
मूल भरण-पोषण वाद HAMA की धारा 19 और 22 के अंतर्गत पारिवारिक न्यायालय, जामताड़ा के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष दायर किया गया था। याचिकाकर्ता विधवा ने अपने नाबालिग पुत्र और पुत्री के साथ यह आरोप लगाया कि जनवरी 2022 में पति की मृत्यु के बाद उसे ससुराल से निकाल दिया गया, पति की संपत्ति और आय से वंचित कर दिया गया, और किसी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं दिया गया।
पारिवारिक न्यायालय ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर, याचिकाकर्ता के ससुर और देवर को आदेश दिया कि वे विधवा को ₹3000 प्रति माह और प्रत्येक नाबालिग बच्चे को ₹1000 प्रति माह भुगतान करें, यह आदेश वाद दायर करने की तिथि से प्रभावी होगा।

अपीलकर्ताओं की दलीलें:
पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए अपीलकर्ताओं ने यह तर्क दिए:
- ट्रायल कोर्ट ने उनकी ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों पर यथोचित विचार नहीं किया और केवल याचिकाकर्ता के पक्ष के साक्ष्यों को प्राथमिकता दी।
- याचिकाकर्ता धारा 19 या 22 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है क्योंकि अपीलकर्ताओं के पास इतनी आय या संसाधन नहीं हैं।
- ससुर वृद्ध और विकलांग हैं जिनके पास कोई नियमित आय नहीं है, और देवर अभी छात्र है।
- याचिका दुर्भावनापूर्ण मंशा से उन्हें परेशान करने और दबाव बनाने हेतु दायर की गई है।
- पारिवारिक संपत्तियाँ संयुक्त रूप से हैं और आदेशित राशि का भुगतान करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
हाईकोर्ट का विश्लेषण:
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता पक्ष को अपील कार्यवाही में नोटिस भेजा गया था, किंतु वे उपस्थित नहीं हुए। न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्षों, याचिकाओं और साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक समीक्षा की।
धारा 19 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि यदि विधवा बहू अपनी आय, संपत्ति, या पति/माता-पिता/बच्चों की संपत्ति से स्वयं का पालन नहीं कर सकती, तो ससुर पर उसका भरण-पोषण करने की वैधानिक जिम्मेदारी होती है। इसी प्रकार, धारा 22 के अनुसार, मृत हिंदू के आश्रितों को उस संपत्ति के उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण पाने का अधिकार है, जिसे उन्होंने विरासत में प्राप्त किया हो।
कोर्ट ने यह टिप्पणी की:
“ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए विधवा बहू को यह विशेष रूप से सिद्ध करना आवश्यक है कि धारा 19 की उपधारा (1) में उल्लिखित अन्य सभी संभावित स्रोत अनुपलब्ध हैं।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि पारिवारिक न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला था कि याचिकाकर्ता की कोई आय नहीं है और वह अपने पिता के साथ रह रही है, जबकि अपीलकर्ता कृषि भूमि का उपयोग कर रहे हैं और पति की मृत्यु के बाद उन्होंने विधवा या उसके बच्चों का कोई भरण-पोषण नहीं किया।
इसके अलावा यह पाया गया कि अपीलकर्ता प्रतिवर्ष लगभग 500 मण धान का उत्पादन करते हैं, जिसकी अनुमानित कीमत ₹2 लाख है, और उन्हें मृतक की एलआईसी पॉलिसी की राशि भी प्राप्त हुई थी। जमीनें पूर्वजों के नाम पर संयुक्त रूप से दर्ज हैं और विधिवत विभाजित नहीं हुई हैं, जिससे विधवा को उस संपत्ति में हिस्सा प्राप्त होता है।
हाईकोर्ट का निष्कर्ष:
खंडपीठ ने माना कि पारिवारिक न्यायालय ने साक्ष्यों की सही प्रकार से सराहना की और विधिक प्रावधानों को सही रूप से लागू किया। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता और उनके बच्चे आश्रित हैं और उनके पास कोई स्वतंत्र आय स्रोत नहीं है, जबकि अपीलकर्ताओं को मृतक की संपत्ति से उत्तराधिकार प्राप्त हुआ है, इसलिए विधवा और उसके बच्चों को भरण-पोषण का वैधानिक अधिकार है।
कोर्ट ने कहा:
“यह न्यायालय… यह मानता है कि पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित निर्णय किसी प्रकार की त्रुटि या मनमानी के दायरे में नहीं आता, क्योंकि मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों पर सोच-विचार कर निर्णय लिया गया है…”
तदनुसार, हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी और पारिवारिक न्यायालय, जामताड़ा द्वारा दिनांक 11 सितंबर 2023 को पारित आदेश (मूल भरण-पोषण वाद संख्या 58/2022) को बरकरार रखा।
उल्लेखित विधिक प्रावधान:
- धारा 19, हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956: विधवा बहू के भरण-पोषण से संबंधित।
- धारा 22, हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956: मृतक की संपत्ति प्राप्त करने वाले उत्तराधिकारियों से आश्रितों का भरण-पोषण।