दिल्ली हाईकोर्ट ने रियल एस्टेट समूह IREO से जुड़े कथित वित्तीय घोटाले में पांच अलग-अलग लेकिन एक जैसे आरोपों के साथ जनहित का दावा करते हुए याचिकाएं दायर करने पर अधिवक्ता गुलशन बब्बर पर ₹1.25 लाख का जुर्माना लगाया है।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने 33 पृष्ठों के विस्तृत निर्णय में सभी याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने न केवल अपने पक्ष में तथ्य छिपाए, बल्कि कोर्ट को जानबूझकर गुमराह भी किया। कोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिकाएं “अस्वीकार्य” हैं क्योंकि याचिकाकर्ता “प्रभावित पक्ष” नहीं है और उसने “झूठे दावे” कर “न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग” किया है।
गुमराह करने वाली पांच याचिकाएं

गुलशन बब्बर द्वारा दायर याचिकाएं—W.P.(CRL) 614/2024, 862/2024, 1111/2024, 1219/2024, और 2595/2024—में आरोप लगाया गया था कि IREO ग्रुप और उसके निदेशक लालित गोयल तथा अन्य अधिकारियों ने ₹4,246 करोड़ की धनराशि का गबन किया और मनी लॉन्ड्रिंग की। याचिकाओं में प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) और अन्य एजेंसियों से न्यायालय निगरानी में जांच कराने की मांग की गई थी।
गलत घोषणा और तथ्य छिपाना
कोर्ट ने कहा कि बब्बर ने बार-बार ऐसी याचिकाएं दायर कीं जिनमें पूर्व में लंबित याचिकाओं का कोई उल्लेख नहीं किया गया। उदाहरण के लिए, W.P. (CRL) 2595/2024 में उन्होंने स्पष्ट रूप से हलफनामे में उल्लेख किया:
“याचिकाकर्ता ने न तो इस माननीय न्यायालय में और न ही उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में समान विषय पर कोई अन्य याचिका दायर की है।”
जबकि उस समय चार अन्य याचिकाएं पहले से ही लंबित थीं। कोर्ट ने इसे “जानबूझकर की गई चुप्पी और भ्रामक बयान” करार दिया।
खुद को खरीदार बताने का झूठा दावा
W.P. (CRL) 862/2024 और 1219/2024 में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह एक होमबायर (फ्लैट खरीदार) है और उसकी मेहनत की कमाई डूब गई है। लेकिन सुनवाई के दौरान उसने स्वीकार किया कि उसने IREO ग्रुप की किसी भी परियोजना में कोई निवेश नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि यह दावा केवल याचिका की योग्यता साबित करने के लिए झूठा किया गया।
ED की पहले से चल रही जांच
प्रवर्तन निदेशालय ने कोर्ट को बताया कि वह पहले से ही IREO ग्रुप के खिलाफ PMLA के तहत ECIR दर्ज कर जांच कर रहा है। अब तक दो अभियोजन शिकायतें दायर की जा चुकी हैं और ₹1,376 करोड़ की संपत्तियां अटैच की गई हैं। ED ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई शिकायतें एजेंसी द्वारा पहले ही जांच में शामिल की जा चुकी हैं।
कोर्ट ने कहा:
“याचिकाकर्ता ED की किसी निष्क्रियता का स्पष्ट प्रमाण नहीं दे सका। ऐसे में कोर्ट की निगरानी में जांच की कोई आवश्यकता नहीं बनती।”
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने बार-बार एक ही तथ्यों पर एक जैसी याचिकाएं दायर कर न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। न्यायमूर्ति अरोड़ा ने अपने निर्णय में कहा:
“याचिकाकर्ता एक पेशेवर अधिवक्ता है और उसने जानबूझकर झूठे बयान देकर, तथ्यों को छिपाकर, और कोर्ट को गुमराह कर न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। यह आचरण अस्वीकार्य है।”
₹1.25 लाख का जुर्माना
कोर्ट ने पांचों याचिकाओं को खारिज करते हुए प्रत्येक पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया है। यह कुल ₹1.25 लाख की राशि चार सप्ताह के भीतर “दिल्ली हाईकोर्ट एडवोकेट्स वेलफेयर फंड” में जमा करानी होगी।