सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने गुरुवार को कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न समानता, स्वतंत्रता, न्याय और व्यक्तिगत गरिमा जैसे संविधान के मूलभूत मूल्यों के बिल्कुल विरुद्ध है। उन्होंने सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और समावेशी कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति सिंह दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों के निपटान हेतु एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल के शुभारंभ के अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह, जो अदालत की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की अध्यक्ष हैं, भी उपस्थित रहे।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “यौन उत्पीड़न महिलाओं को नीचा दिखाता है और एक विषाक्त कार्य वातावरण पैदा करता है। यह उनकी रचनात्मकता के मार्ग में बाधा डालता है और गहन मानसिक व शारीरिक आघात पहुंचाता है।” उन्होंने जोर देते हुए कहा, “ऐसे कृत्य संविधान द्वारा प्रदत्त समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सक्षमकारी सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।”

उन्होंने बताया कि आज जब महिलाएं सभी क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं, तो यह अत्यंत आवश्यक है कि कार्यस्थल सुरक्षित, संरक्षित और गरिमा व समानता को ठेस पहुंचाने वाली प्रथाओं से मुक्त हों। “यह एक मूलभूत बदलाव का समय है जब महिलाएं पारंपरिक बाधाओं को तोड़ रही हैं। ऐसे में यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि हम उनके लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करें,” उन्होंने कहा।
न्यायमूर्ति सिंह ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से निपटने में सांस्कृतिक और प्रणालीगत चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि कई बार सांस्कृतिक रूप से कुछ व्यवहारों को उत्पीड़न मानने से ही इनकार कर दिया जाता है। अक्सर संस्थाएं इन शिकायतों को सुधार का अवसर मानने के बजाय प्रतिष्ठा पर संकट समझती हैं।” उन्होंने इसके समाधान के लिए व्यापक संवेदनशीलता और मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता बताई।
पुरुष सहयोगियों की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पुरुषों को एक सम्मानजनक कार्य संस्कृति बनाने में सक्रिय भागीदार बनना चाहिए। “यह जरूरी है कि पुरुष यह समझें कि क्या व्यवहार उनकी महिला सहकर्मियों को असहज करता है, और किसी भी अनुचित आचरण की स्थिति में समर्थन दें—यह सहानुभूति नहीं, बल्कि एक गंभीर नैतिक जिम्मेदारी है।”
यह नया पोर्टल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम (PoSH) अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को सरल बनाएगा और न्यायपालिका की लैंगिक रूप से संवेदनशील कार्यस्थल के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करेगा।