जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने बुधवार को 63 वर्षीय पाकिस्तानी मूल की महिला रक्षंदा राशिद की वापसी संबंधी एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी। यह आदेश केंद्रीय गृह मंत्रालय को उन्हें भारत वापस लाने का निर्देश देता था। रक्षंदा को 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत से पाकिस्तान भेज दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश अरुण पाली की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश और गृह मंत्रालय द्वारा दायर लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति राहुल भारती द्वारा 6 जून को पारित आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।
रक्षंदा राशिद मूल रूप से लाहौर की रहने वाली हैं और 38 वर्षों से जम्मू में अपने भारतीय पति के साथ रह रही थीं। पहलगाम आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत और कई अन्य के घायल होने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के चलते उन्हें 30 अप्रैल को पाकिस्तान निर्वासित कर दिया गया था।

एकल पीठ ने रक्षंदा की निर्वासन प्रक्रिया को “न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत” और उनके मौलिक एवं मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया था। अदालत ने उन्हें भारत लौटाने का निर्देश दिया था, जिसके खिलाफ केंद्र और यूटी प्रशासन ने अपील की।
रक्षंदा की ओर से पेश अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल का पाकिस्तान में अब कोई पारिवारिक संबंध नहीं बचा है और वह भारत में अपने पति के साथ 1980 के दशक से रह रही थीं। उन्होंने कहा, “उनके पास एक दीर्घकालिक वीज़ा था, जिसे हर साल नवीनीकृत किया जाता था। उन्होंने इस वर्ष जनवरी में नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन पहलगाम घटना के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई।” वर्तमान में रक्षंदा लाहौर में एक पेइंग गेस्ट के तौर पर रह रही हैं, पहले कुछ दिन उन्होंने होटल में बिताए थे।
उन्होंने 1996 में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था, लेकिन यह आवेदन अब तक लंबित है। अधिवक्ता शर्मा ने कहा, “उनका निर्वासन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।”
वहीं, गृह मंत्रालय की अपील में कहा गया है कि रक्षंदा का वीज़ा समाप्त हो चुका था और उनके पास भारत में रहने का कोई वैध आधार नहीं था। मंत्रालय ने पहलगाम हमले के मद्देनज़र राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क को भी उनके निर्वासन का आधार बताया।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई को निर्धारित की गई है।