दिल्ली हाईकोर्ट ने वजन घटाने के उपचार में उपयोग की जा रही कुछ दवा संयोजनों की सुरक्षा और स्वीकृति पर निर्णय लेने से पहले, औषधि महानियंत्रक (DCGI) को चिकित्सा विशेषज्ञों और संबंधित हितधारकों से परामर्श करने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने यह निर्देश जितेन्द्र चौकसे द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन दवाओं को लाइसेंस दिए जाने के पीछे पर्याप्त नैदानिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं और ये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता को अनुमति दी कि वह दो सप्ताह के भीतर DCGI को अतिरिक्त अभ्यावेदन प्रस्तुत करें, जिसमें सभी आवश्यक दस्तावेज और सामग्री संलग्न हों। DCGI को निर्देश दिया गया है कि वह अभ्यावेदन प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लें।

पीठ ने टिप्पणी की, “इन चिंताओं पर सबसे पहले वैधानिक प्राधिकरण को विचार करना होगा,” यह रेखांकित करते हुए कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत DCGI की जिम्मेदारी है कि वह दवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
हाल की एक दुखद घटना की ओर इशारा करते हुए अदालत ने कहा, “देखिए, दो-तीन दिन पहले क्या हुआ…” — यह टिप्पणी संभवतः टीवी कलाकार शेफाली जरीवाला की अचानक मृत्यु की खबरों की ओर संकेत थी, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे वर्षों से एंटी-एजिंग उपचार ले रही थीं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि मोटापे और वजन नियंत्रण के लिए जिन दवाओं का उपयोग किया जा रहा है, वे मूल रूप से टाइप-2 मधुमेह के इलाज के लिए विकसित की गई थीं और इनके नए उपयोग की स्वीकृति मुख्यतः अल्पकालिक प्रभाव के आधार पर दी गई है। उन्होंने तर्क दिया कि इन दवाओं का दीर्घकालिक सुरक्षा डेटा उपलब्ध नहीं है और भारत में इनके उपयोग को लेकर कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं किए गए हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि “इन दवाओं के गंभीर प्रतिकूल प्रभावों को नजरअंदाज करते हुए लाइसेंस जारी किए गए हैं, और अधिकांश मामलों में कोई केंद्रित नैदानिक अध्ययन नहीं किया गया है।”
अदालत ने DCGI को निर्देश दिया कि वह मूल्यांकन प्रक्रिया के दौरान विशेषज्ञों और संबंधित दवा निर्माताओं से परामर्श करे। अदालत ने कहा, “DCGI को विशेषज्ञों के साथ-साथ संबंधित दवा निर्माताओं जैसे अन्य हितधारकों से भी परामर्श करना होगा।”