भगोड़ों को प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत मिल सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि भारत में प्रत्यर्पण कार्यवाही का सामना कर रहे व्यक्तियों को भारतीय कानून के तहत अग्रिम जमानत (Pre-Arrest Bail) लेने से रोका नहीं जा सकता। अदालत ने कहा कि प्रत्यर्पण अधिनियम (Extradition Act) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) — जो अब दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का स्थान ले चुकी है — की धारा 438 को अप्लाई होने से रोकता हो।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा, “यदि प्रत्यर्पण अधिनियम में अग्रिम जमानत को निषिद्ध मान लिया जाए, तो यह न्यायालय द्वारा एक ऐसी सीमा जोड़ने जैसा होगा जिसे विधायिका ने जानबूझकर नहीं जोड़ा है।” उन्होंने यह भी दोहराया कि यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में किसी अपराध के लिए गिरफ्तारी की आशंका जताता है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

READ ALSO  हाई कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अब्बास अंसारी को जमानत देने से इनकार किया

यह निर्णय शंकेश मूठा की याचिका पर आया, जो एक भारतीय नागरिक हैं और थाईलैंड की फ्लॉलेस कंपनी लिमिटेड से करीब ₹3.98 करोड़ मूल्य के आठ हीरे चुराने के आरोप में 2021 से वांछित हैं। आरोप है कि मूठा ने चोरी स्वीकार की थी और गिरफ्तारी से पहले ही भारत भाग आए थे।

Video thumbnail

बैंकॉक की अदालत के वारंट के आधार पर भारत में सीबीआई और इंटरपोल के माध्यम से पटियाला हाउस कोर्ट ने अक्टूबर 2024 में उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। मूठा ने बाद में अदालत में पेश होकर अग्रिम जमानत और वारंट रद्द करने की मांग की, जिसे अप्रैल 2025 में ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता अमित तिवारी ने दलील दी कि प्रत्यर्पण अधिनियम की धारा 25 केवल गिरफ्तारी के बाद जमानत की अनुमति देती है और अग्रिम जमानत की अनुमति नहीं देती।

READ ALSO  राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में सुनवाई टली, अब 8 अगस्त को होगी अगली सुनवाई

लेकिन न्यायालय ने यह तर्क खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि धारा 25 सिर्फ उस चरण को परिभाषित करती है जब जमानत दी जा सकती है, लेकिन यह अग्रिम जमानत को निषिद्ध नहीं करती। उन्होंने कहा, “CrPC की धारा 438 (अब BNSS में) को बाहर करने का कोई स्पष्ट या निहित निषेध नहीं है।”

अंततः अदालत ने मूठा को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी, यह देखते हुए कि उन्होंने हर पेशी पर सहयोग किया और स्वयं अदालत में उपस्थित होते रहे। यह फैसला एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित करता है कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया का सामना कर रहे भगोड़े भी अग्रिम जमानत का लाभ उठा सकते हैं, और कानूनी व्याख्या के नाम पर संवैधानिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।

READ ALSO  अत्यधिक शराब पीने से हुई मौत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकारी के बीमा के दावा को खारिज कर दिया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles