दिल्ली हाईकोर्ट ने जीडी गोयनका स्कूल को ऑटिज्म से पीड़ित बच्ची को दाखिला देने का आदेश दिया, कहा– समावेशी शिक्षा का असली उद्देश्य ‘अपनापन’ है

समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने वाली एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में, दिल्ली हाईकोर्ट ने जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल को छह वर्षीय ऑटिज्म से पीड़ित बच्ची को दोबारा दाखिला देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति विकास महाजन ने अपने आदेश में कहा कि समावेशी शिक्षा केवल शिक्षा तक पहुंच भर नहीं है, बल्कि यह हर बच्चे के लिए कक्षा में ‘अपनापन’ की भावना विकसित करने के बारे में है।

न्यायमूर्ति महाजन ने कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ‘समावेशी शिक्षा’ केवल शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने का नाम नहीं है। यह ‘अपनापन’ के बारे में है… यह समझने के बारे में है कि हर बच्चे की कक्षा में जगह इसलिए नहीं है कि वे एक जैसे हैं, बल्कि इसलिए है कि वे अलग हैं, और यही भिन्नता पूरे शिक्षण वातावरण को समृद्ध बनाती है।”

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यह आदेश अधिवक्ता अशोक अग्रवाल द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जो बच्ची के माता-पिता की ओर से दायर की गई थी। याचिका के अनुसार, बच्ची का जन्म मई 2017 में हुआ था और नवंबर 2019 में उसमें ऑटिज्म के लक्षण देखे गए थे। दिसंबर 2021 में उसे ‘माइल्ड ऑटिज्म’ का औपचारिक निदान दिया गया। 2021–22 के सत्र में बच्ची को ‘सिब्लिंग क्लॉज’ के तहत जीडी गोयनका स्कूल में दाखिल किया गया था, और उसके भाषण संबंधी विकास में देरी की जानकारी प्रवेश फॉर्म में दी गई थी।

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हालांकि, कोविड के बाद जब अप्रैल 2022 में स्कूल दोबारा खुला, तो माता-पिता ने स्कूल से ‘शैडो टीचर’ या विशेष शिक्षक की सहायता मांगी। याचिका के अनुसार, स्कूल की ओर से सहयोग न मिलने और लगातार दबाव के कारण जनवरी 2023 में बच्ची की पढ़ाई रुक गई।

न्यायालय ने कहा कि न्याय के हित में बच्ची को फिर से समावेशी शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने स्कूल को निर्देश दिया कि वह बच्ची को कक्षा 1 या उसकी उम्र के अनुरूप किसी भी कक्षा में दो सप्ताह के भीतर नियमित शुल्क लेकर दोबारा दाखिला दे। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक अभिभावक-नियुक्त ‘शैडो टीचर’ को बच्ची के साथ मौजूद रहने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते वह स्कूल के अनुशासन और सुरक्षा मानकों का पालन करे।

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इसके अलावा, अदालत ने शिक्षा निदेशालय को निर्देश दिया कि वह बच्ची के पुनः एकीकरण की निगरानी करे और यह सुनिश्चित करे कि स्कूल ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम’ और अन्य संबंधित कानूनों के अनुरूप, भेदभाव रहित और समावेशी वातावरण प्रदान करने के अपने कानूनी दायित्व का पालन करे।

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