पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक धोखाधड़ी के मामले में आरोपी को नियमित ज़मानत देते हुए कहा है कि केवल इस आधार पर कि आरोपी के खिलाफ अन्य आपराधिक मामले लंबित हैं, ज़मानत से इनकार नहीं किया जा सकता, यदि वर्तमान मामले के तथ्य ज़मानत के पक्ष में हों।
न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत की एकलपीठ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 483 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुरुग्राम के थाना सेक्टर-10 में दर्ज एफआईआर संख्या 0726 दिनांक 22.11.2023 (धारा 420 आईपीसी) में ज़मानत की मांग की गई थी।
प्रकरण की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता राज कुमार को 9 जुलाई 2024 को गिरफ्तार किया गया था और 12 अगस्त 2024 को आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री स्पर्श छिब्बर ने दलील दी कि यह एक दीवानी विवाद था जिसे आपराधिक रंग दे दिया गया है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता पिछले 10 महीने से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में है और मामले में शिकायतकर्ता का बयान पहले ही हो चुका है।
राज्य का विरोध
हरियाणा राज्य की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल श्री राजीव सिद्धू और शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री रवि यादव ने ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पांच अन्य आपराधिक मामलों में भी शामिल है और एक आदतन अपराधी है। हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया कि वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता का बयान हो चुका है और सभी अपराध मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा विचारणीय हैं।
अदालत की समीक्षा
न्यायमूर्ति शेखावत ने कहा कि यद्यपि याचिकाकर्ता के विरुद्ध अन्य मामले लंबित हैं, फिर भी केवल इस आधार पर उसे ज़मानत से वंचित नहीं किया जा सकता यदि वर्तमान मामले की परिस्थितियाँ ज़मानत के अनुकूल हों।
न्यायालय ने प्रभाकर तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2020(1) आरसीआर (क्रिमिनल) 831, तथा मौलाना मोहम्मद आमिर रशादी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2012(1) आरसीआर (क्रिमिनल) 586 में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी के विरुद्ध कई आपराधिक मामले लंबित होने मात्र से उसे ज़मानत से वंचित नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता 10 महीने से अधिक समय से हिरासत में है, और निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की संभावना नहीं है। ऐसी स्थिति में आगे की हिरासत का कोई सार्थक उद्देश्य नहीं रहेगा।
आदेश और शर्तें
न्यायालय ने ज़मानत मंज़ूर करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट/ड्यूटी मजिस्ट्रेट/मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अनुसार ज़मानत और मुचलके दाखिल करने पर रिहा किया जाए। साथ ही निम्नलिखित शर्तें लगाई गईं:
- याचिकाकर्ता किसी गवाह को धमकाने, प्रलोभन देने या दबाव डालने का प्रयास नहीं करेगा;
- याचिकाकर्ता प्रत्येक पेशी पर न्यायालय में उपस्थित रहेगा;
- बिना पूर्व अनुमति के न्यायालय से अनुपस्थित नहीं रहेगा;
- यदि पासपोर्ट है तो जमा करेगा, अन्यथा शपथपत्र देगा;
- अपने निवास और मोबाइल नंबर का विवरण शपथपत्र में देगा और परिवर्तन की स्थिति में अदालत को सूचित करेगा;
- मुकदमे की अवधि में कोई नया आपराधिक कृत्य न करे;
- अदालत दो भारी स्थानीय जमानतदारों की मांग कर सकती है और उचित समझे तो अतिरिक्त शर्तें भी लागू कर सकती है।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो ज़मानत रद्द की जा सकती है और अभियोजन पक्ष को उस आधार पर आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता होगी।
प्रकरण विवरण:
- मामला: राज कुमार बनाम राज्य हरियाणा
- मामला संख्या: CRM-M-57570-2024
- न्यूट्रल साइटेशन: 2025:PHHC:069855
- याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता: श्री स्पर्श छिब्बर
- राज्य की ओर से अधिवक्ता: श्री राजीव सिद्धू, उप महाधिवक्ता
- शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता: श्री रवि यादव