यदि परिस्थितियों की श्रृंखला पूर्ण हो और आरोपी ‘अंतिम बार साथ देखा गया’ व उसके पास से बरामदगी सिद्ध हो जाए, तो उसका कोई स्पष्टीकरण न देना बचाव के लिए घातक सिद्ध होता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महिला और दो युवकों की नृशंस हत्या के आरोपी चंद्रकांत निषाद की अपील को खारिज करते हुए उसकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा (मुख्य न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय CRA No. 699 of 2023 में दिया, जिसमें रायपुर की 14वीं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा 26 नवंबर 2020 को पारित सजा के विरुद्ध अपील दायर की गई थी।

पृष्ठभूमि

यह मामला रायपुर ज़िले के उरला थाना क्षेत्र के ग्राम बाना निवासी दुलौरिन बाई, सोनू निषाद और संजय निषाद की हत्या से संबंधित है। 10 अक्टूबर 2019 को पुलिस को आरोपी चंद्रकांत निषाद द्वारा सूचना दी गई, जिसके आधार पर मृत्यु की मर्ग सूचना दर्ज की गई। जांच के दौरान यह सामने आया कि तीनों की हत्या किसी भारी वस्तु से सिर पर प्रहार कर की गई थी, और साक्ष्य छिपाने के उद्देश्य से उनके शवों को घर में जलाकर नष्ट करने का प्रयास किया गया।

जांच में चंद्रकांत निषाद को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया। साक्षियों की उपस्थिति में दिए गए मेमोरण्डम के आधार पर उसके द्वारा अपराध में प्रयुक्त लकड़ी की लाठी और मृतक सोनू निषाद के वस्त्र खारुन नदी के किनारे से बरामद किए गए। आरोपी के पास से खून से सना टी-शर्ट और घटना में प्रयुक्त स्कूटी (TVS Jupiter) भी जब्त की गई।

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जांच पूर्ण होने पर आरोपी के विरुद्ध धारा 302 (तीन बार) व 201 आईपीसी के अंतर्गत आरोप पत्र दाखिल किया गया। आरोपी ने आरोपों से इनकार किया और झूठा फंसाए जाने का दावा किया। ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और ₹300 जुर्माने की सजा सुनाई, जिसमें सभी सजाएं एक साथ चलने के आदेश दिए गए।

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आरोपी की दलीलें

अपील में आरोपी की ओर से यह तर्क दिया गया कि हत्या का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और दोषसिद्धि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है। यह भी कहा गया कि केवल एक गवाह ने उसे मृतकों के साथ अंतिम बार देखे जाने की बात कही थी, जो विश्वासयोग्य नहीं है। इसके अतिरिक्त, यह तर्क दिया गया कि पुलिस को दी गई कथित स्वीकारोक्ति का उपयोग सजा के आधार के रूप में नहीं किया जा सकता।

राज्य की ओर से प्रस्तुत पक्ष

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि अभियोजन ने एक सशक्त और पूर्ण परिस्थितिजन्य साक्ष्य श्रृंखला प्रस्तुत की है, जिसमें बरामदगी, फोरेंसिक रिपोर्ट और आरोपी के पास से प्राप्त वस्तुओं पर मानव रक्त के निशान शामिल हैं। अभियोजन ने यह भी कहा कि आरोपी ने इन परिस्थितियों के संबंध में कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया, जिससे उसकी संलिप्तता सिद्ध होती है।

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न्यायालय का विश्लेषण

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Sharad Birdhichand Sarda v. State of Maharashtra [(1984) 4 SCC 116] और C. Chenga Reddy v. State of A.P. [(1996) 10 SCC 193] का हवाला देते हुए दोहराया कि यदि परिस्थितियों की श्रृंखला पूर्ण, सुसंगत और केवल आरोपी की दोषिता की ओर इशारा करती है, तो दोषसिद्धि उचित होती है।

अदालत ने निम्नलिखित तथ्यों को अभियोजन द्वारा सिद्ध माना:

  • मृतकों की मृत्यु घातक चोटों के कारण हुई और वह हत्या की श्रेणी में आती है।
  • आरोपी को मृतकों के साथ घटना से पूर्व देखा गया था।
  • घटनास्थल से आरोपी के मेमोरण्डम के आधार पर लकड़ी की लाठी और मृतक के वस्त्र बरामद हुए।
  • आरोपी के वस्त्रों पर और लकड़ी की लाठी पर ‘O’ ब्लड ग्रुप का मानव रक्त पाया गया।
  • आरोपी द्वारा किसी भी तथ्य का उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया, विशेष रूप से यह कि उसे शवों के बारे में जानकारी कैसे मिली।

अदालत ने कहा:

“जब आरोपी को मृतकों के साथ अंतिम बार देखा गया हो और बरामद वस्तुओं पर खून के निशान पाए जाएं तथा आरोपी इन तथ्यों की कोई विश्वसनीय व्याख्या नहीं दे सके, तो यह अभियोजन के पक्ष में सशक्त साक्ष्य बन जाता है।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन जब सभी कड़ियाँ आपस में जुड़ती हों और आरोपी चुप्पी साधे, तो संदेह के लिए कोई स्थान नहीं बचता।

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निष्कर्ष

अदालत ने कहा कि सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य इस प्रकार जुड़े हुए हैं कि यह किसी अन्य संभावना को पूरी तरह निष्कासित कर देते हैं और केवल आरोपी की दोषिता की पुष्टि करते हैं। न्यायालय ने कहा:

“यह तथ्य संदेह से परे सिद्ध होता है कि आरोपी चंद्रकांत निषाद ने ही मृतकों को लकड़ी की लाठी से प्रहार कर हत्या की और साक्ष्य मिटाने के लिए केरोसिन डालकर शवों को जलाया।”

तदनुसार, न्यायालय ने अपील को खारिज कर दी और सत्र न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि व सजा को सही ठहराया। साथ ही, संबंधित जेल अधीक्षक को आदेश दिया गया कि वह इस निर्णय की प्रति आरोपी को उपलब्ध कराएं और उच्चतम न्यायालय में अपील का अधिकार बताएं।

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