बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे की बाढ़रेखा तय करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को चार महीने का समय दिया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे शहर के लिए बाढ़रेखा (फ्लडलाइन) चिह्नांकन को अंतिम रूप देने के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार को सख्त चार महीने की समयसीमा दी है। यह निर्देश 2017 की विकास योजना (डीपी) में गलत और पुराने चिह्नांकन को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आया है।

न्यायमूर्ति आलोक आधार और न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की खंडपीठ ने यह आदेश 30 जून को पुणे के नागरिक कार्यकर्ताओं सरंग यादवडकर, विवेक वेलणकर और विजय कुंभार द्वारा 2021 में दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान पारित किया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि डीपी में बाढ़रेखा के गलत आंकड़े शहर के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं और मांग की गई थी कि मौजूदा बाढ़रेखा से 100 मीटर के भीतर किसी भी नई निर्माण गतिविधि की अनुमति न दी जाए।

READ ALSO  हाई कोर्ट ने लुधियाना कोर्ट में विस्फोट के मद्देनजर अदालत परिसरों में सुरक्षा व्यवस्था का ब्योरा मांगा

इससे पहले हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया था। हालांकि, समिति ने न तो बैठक की और न ही कोई रिपोर्ट सौंपी, जिसके कारण याचिकाकर्ताओं को इस निष्क्रियता को उजागर करते हुए एक अंतरिम आवेदन दाखिल करना पड़ा।

Video thumbnail

अपने नवीनतम निर्देश में कोर्ट ने आदेश दिया कि विशेषज्ञ समिति 30 जून से दो महीने के भीतर रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपे और राज्य सरकार उस रिपोर्ट के आधार पर अगले दो महीने में उचित कार्रवाई करे।
कोर्ट ने कहा, “विशेषज्ञ समिति 30 जून से दो महीने की अवधि में रिपोर्ट अवश्य राज्य सरकार को सौंपे। रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद राज्य सरकार दो और महीनों में उस पर उचित कार्रवाई करे।” कोर्ट ने यह भी कहा कि रिपोर्ट आने के बाद याचिकाकर्ता अतिरिक्त सुझाव दे सकते हैं।

सक्रिय कार्यकर्ता सरंग यादवडकर और विजय कुंभार ने बताया कि इस जनहित याचिका का मकसद मौजूदा बाढ़रेखा को वैज्ञानिक रूप से निर्धारित नई रेखाओं से बदलवाना है, जो अद्यतन हाइड्रोलॉजिकल मानचित्रण पर आधारित हों।
यादवडकर ने कहा, “पहले के कोर्ट आदेशों के बावजूद विशेषज्ञ समिति ने न तो कोई अध्ययन शुरू किया, न ही बाढ़रेखाओं को संशोधित किया। गलत नियोजन के कारण पुणे अभी भी बाढ़ के खतरे से जूझ रहा है।”

READ ALSO  करण जौहर ने अपने नाम के अनधिकृत उपयोग के लिए फिल्म के शीर्षक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की

याचिका में यह भी जोर दिया गया था कि बाढ़रेखा से 100 मीटर के भीतर की जमीन को विकास योजनाओं में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे पुणे को भविष्य में बाढ़ के गंभीर खतरे का सामना करना पड़ सकता है।

हाईकोर्ट का यह नया आदेश पुणे की बाढ़ सुरक्षा का वैज्ञानिक तरीके से पुनर्मूल्यांकन कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है और शहरी नियोजन की विफलताओं को सुधारने की दिशा में एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है।

READ ALSO  तेलंगाना फोन टैपिंग मामले में पूर्व डीसीपी को 7 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles