झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में शिक्षक नियुक्तियों की धीमी गति पर सोमवार को कड़ा असंतोष जताते हुए झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) को पहले दिए गए निर्देशों का पालन न करने को लेकर फटकार लगाई है।
मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गंभीर चिंता जताई कि आयोग ने पहले अदालत को जो गति सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया था, वह बरकरार नहीं रखी गई।
JSSC ने विभिन्न विषयों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रगति का ब्यौरा एक हलफनामे के माध्यम से अदालत के समक्ष रखा। हालांकि, पीठ ने इसे असंतोषजनक पाया। अदालत ने टिप्पणी की, “नियुक्तियों की गति अपेक्षाओं और पूर्व प्रतिबद्धताओं से बहुत पीछे है।”

हलफनामे के अनुसार, गणित और विज्ञान विषयों में लगभग 6,000 पात्र अभ्यर्थियों में से केवल 2,734 को ही शॉर्टलिस्ट किया गया है, जबकि इन विषयों में कुल 5,008 पद रिक्त हैं। आयोग ने बताया कि शेष अभ्यर्थी न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त नहीं कर सके, इस कारण वे नियुक्ति के लिए अयोग्य ठहराए गए।
सामाजिक विज्ञान विषय में 5,002 रिक्तियों के लिए 5,304 उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग हो चुकी है, लेकिन उनका सत्यापन अभी तक लंबित है, जिससे प्रक्रिया और अधिक विलंबित हो रही है।
लगातार बनी हुई इस स्थिति को देखते हुए, अदालत ने JSSC को निर्देश दिया कि वह नियुक्ति पत्र जारी करने की समय-सीमा सहित एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट पेश करे। मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को तय की गई है।
ज्यां द्रेज द्वारा दायर इस जनहित याचिका में राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी का मुद्दा उठाया गया था। उन्होंने यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि झारखंड के लगभग 30% स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी झारखंड में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंताओं को फिर से उजागर करती है, जहां पहले से ही शिक्षक-छात्र अनुपात बेहद खराब है और सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में गहरे सुधार की आवश्यकता है।