मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने SHO को रेप पीड़िता को नोटिस देने में देरी के लिए 1,000 पौधे लगाने का निर्देश दिया

न्यायिक उत्तरदायित्व और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को जोड़ते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सतना जिले के एक पुलिस अधिकारी को रेप पीड़िता को अदालत का नोटिस देने में देरी के लिए 1,000 पौधे लगाने का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीशों की खंडपीठ — न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति ए.के. सिंह — ने यह आदेश सतना के सिटी कोतवाली थाना प्रभारी (SHO) रवींद्र द्विवेदी के खिलाफ मंगलवार को एक आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान पारित किया। यह अपील एक नाबालिग से बलात्कार के दोषी व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी।

READ ALSO  मजिस्ट्रेट या उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना जिला पुलिस प्रमुख आगे की जांच का आदेश नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट

प्रक्रियात्मक कानून के तहत, जब किसी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील दायर की जाती है तो पीड़िता को नोटिस दिया जाना अनिवार्य होता है। इस मामले में SHO द्विवेदी की ओर से हुई देरी को गंभीर मानते हुए, कोर्ट ने केवल जुर्माना नहीं लगाया, बल्कि पर्यावरणीय दायित्व भी निर्धारित किया।

कोर्ट ने आदेश दिया, “थाना प्रभारी स्वयं अपने खर्चे पर यह वृक्षारोपण करेंगे।” यह भी कहा गया कि वृक्षारोपण 1 जुलाई से 31 अगस्त 2025 के बीच सतना जिले के चित्रकूट क्षेत्र में किया जाए।

SHO द्विवेदी को इस लापरवाही के लिए पुलिस महानिरीक्षक (IG) द्वारा पहले ही ₹5,000 का जुर्माना लगाया जा चुका है। उन्होंने अदालत के समक्ष खेद व्यक्त किया और प्रायश्चित स्वरूप वृक्षारोपण की स्वेच्छा से पेशकश की, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर इसे अपने आदेश का हिस्सा बना दिया।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आम, जामुन, महुआ और अमरूद जैसे फलदार वृक्ष लगाए जाएं और पौधारोपण का प्रमाण देने के लिए उनके फोटो एवं GPS लोकेशन हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराए जाएं। इसके अतिरिक्त, पुलिस अधीक्षक द्वारा निरीक्षण के बाद एक शपथपत्र भी प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।

READ ALSO  दिल्ली कोर्ट ने 26/11 हमले के आरोपी तहव्वुर राणा की आवाज़ और हस्तलिपि के नमूने लेने की अनुमति दी

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लगाए गए पौधों की कम से कम एक वर्ष तक देखरेख की जाए ताकि उनका सही तरीके से अंकुरण और जीवित रहना सुनिश्चित किया जा सके।

यह निर्देश भारतीय न्यायालयों में उभरती उस प्रवृत्ति का उदाहरण है, जिसमें न्यायिक दायित्व को केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि सुधारात्मक और सार्वजनिक कल्याणकारी तरीके से लागू किया जा रहा है — विशेषकर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के संदर्भ में।

READ ALSO  किस परिस्थिति में समान तथ्यों के लिए दूसरी आपराधिक शिकायत दायर की जा सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles