जजों को गाली देने और धमकाने वाले वकील के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट ने दिए आपराधिक कार्रवाई और अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के निर्देश

मद्रास हाईकोर्ट ने कोर्ट की अवमानना और न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने को गंभीरता से लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बालासुब्रमण्यम के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के आदेश दिए हैं। यह मामला तमिलनाडु के रणिपेट ज़िले में अरक्कोनम पुलिस को सौंपा गया है। अदालत ने उन्हें बिना ज़मानत वारंट (NBW) के निष्पादन में बाधा डालने और हाईकोर्ट की मौजूदा जज सहित अन्य न्यायिक अधिकारियों को गाली देने और धमकाने के आरोपों में अभियोजन शुरू करने को कहा है।

न्यायमूर्ति पी.टी. आशा ने की अवमानना कार्यवाही की अनुशंसा

न्यायमूर्ति पी.टी. आशा ने वकील के आचरण को न्यायिक प्रक्रिया में सीधी हस्तक्षेप मानते हुए इस मामले को स्वयं संज्ञान लेकर (suo motu) एक डिवीजन बेंच को आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिए भेज दिया। साथ ही उन्होंने बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुडुचेरी (BCTNP) को इस गंभीर आचरण पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

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अवमानना का कारण बना मामला

यह विवाद एस. कृष्णवेणी, एम. मरकंडन और ई. सुब्रमणि द्वारा दाखिल एक ट्रांसफर याचिका से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने शोलिंगुर स्थित डिस्ट्रिक्ट मुंसिफ कोर्ट में लंबित संपत्ति विवाद को चेन्नई ट्रांसफर करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति आशा ने याचिका के साथ दाखिल हलफनामे में हाईकोर्ट के जजों और जिला न्यायाधीश के खिलाफ आपत्तिजनक और मानहानि पूर्ण टिप्पणियां पाईं। प्रतिवादी पक्ष के वकील को “ठग और बदमाश” तक कहा गया।

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जब न्यायालय ने पूछा कि इस प्रकार की भाषा अदालत के दस्तावेज़ों में कैसे आई, तो वरिष्ठ अधिवक्ता बालासुब्रमण्यम (जिन्हें बार में 47 वर्षों का अनुभव है) ने कथित तौर पर जज पर चिल्लाना शुरू कर दिया और उन्हें डराने की कोशिश की। इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की और उन्हें तलब किया।

गिरफ्तारी वारंट के निष्पादन में बाधा

4 जून 2025 को जब याचिकाकर्ता अदालत में उपस्थित नहीं हुए, तो न्यायालय ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया और उन्हें 18 जून को अदालत में पेश करने का आदेश दिया। अतिरिक्त लोक अभियोजक एस. सुगेंद्रन ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता अदालत परिसर लाए गए थे, लेकिन उनके वकील ने उनके आधार कार्ड छीन लिए और CISF अधिकारियों को उनकी पहचान सत्यापित करने से रोक दिया।

इसके बाद वकील स्वयं अदालत कक्ष में आए और न्यायमूर्ति आशा को धमकाया तथा कथित रूप से कहा कि “अगर आपने कुछ किया तो मैं आपको बर्बाद कर दूंगा।” उन्होंने यह भी मांग की कि जज मामले से अलग हो जाएं और मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शिकायत दर्ज कराने की धमकी दी।

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“यह आचरण आपराधिक अवमानना है” – हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति आशा ने अपने आदेश में कहा:

“हलफनामे की भाषा दर्शाती है कि यह स्क्रिप्ट वकील द्वारा ही तैयार की गई है, और यह इस अदालत के लिए अत्यंत चौंकाने वाली बात है, क्योंकि इसमें न केवल न्यायिक अधिकारी बल्कि इस अदालत के जजों के खिलाफ भी अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया है।”

उन्होंने कहा कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा इस प्रकार का आचरण कानूनी पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। अदालत ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की प्रति और घटना का CCTV फुटेज बार काउंसिल को भेजे ताकि आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।

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याचिकाकर्ताओं ने मांगी माफी, अवमानना से मुक्त

20 जून 2025 को जब याचिकाकर्ता अदालत में पेश हुए, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने वकील को याचिका दाखिल करने का निर्देश नहीं दिया था और केवल अंग्रेजी में लिखे कागजात पर हस्ताक्षर किए थे, जिनका उन्हें अर्थ नहीं पता था। उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने उन्हें अवमानना कार्यवाही से मुक्त कर दिया।

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