मुवक्किलों को सलाह देने के लिए पुलिस का वकीलों को बुलाना कानूनी स्वतंत्रता की मूल भावना को नष्ट कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने न्याय व्यवस्था और वकीलों की स्वतंत्रता से जुड़े एक अहम सवाल पर ध्यान आकृष्ट किया है—क्या जांच एजेंसी किसी आपराधिक मामले में पक्ष की ओर से पेश वकील को सीधे समन भेज सकती है? यह प्रश्न अधिवक्ता और मुवक्किल के बीच की गोपनीयता, वकालत के पेशे की स्वायत्तता और न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत को चुनौती देता है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया:

“वकालत का पेशा न्यायिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। वकीलों को उनके पेशे के कारण कुछ अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिनकी गारंटी विधिक प्रावधानों से होती है। यदि पुलिस या जांच एजेंसियों को इस बात की अनुमति दी जाए कि वे किसी मामले में सलाह देने वाले वकीलों या बचाव पक्ष के वकीलों को सीधे समन भेजें, तो यह न केवल वकालत की स्वतंत्रता को बाधित करेगा, बल्कि न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता पर भी प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न करेगा।”

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पृष्ठभूमि: गुजरात का मामला

यह मामला गुजरात से जुड़ा है, जहां एक वकील ने एक आरोपी की जमानत याचिका में पेश होने के बाद पेशेवर रूप से कार्य किया था। इसके बाद 24 मार्च 2025 को उन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 179 के तहत नोटिस भेजा गया। यह नोटिस अहमदाबाद के एसीपी (SC/ST सेल) द्वारा जारी किया गया था, जिसमें एक ऋण लेनदेन से जुड़ी जानकारी देने को कहा गया था।

वकील ने इस नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी, यह दलील देते हुए कि इससे मुवक्किल और वकील के बीच की गोपनीयता का उल्लंघन होता है। हालांकि, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

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सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिक टिप्पणियां

न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा:

“किसी मामले में सलाह देने वाले वकीलों या बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं को जांच एजेंसियों द्वारा सीधे समन भेजना वकालत की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न करता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि वकील का पेशा न्यायिक प्रक्रिया के लिए अत्यंत आवश्यक है और उनके कुछ अधिकार और विशेषाधिकार उनकी भूमिका की प्रकृति के कारण संरक्षित हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) से सहायता मांगी है।

कोर्ट ने फिलहाल राज्य प्राधिकरणों को उस वकील को समन भेजने से रोक दिया है, जिसने पुलिस द्वारा समन जारी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।

अधिवक्ता-मुवक्किल गोपनीयता: विधिक प्रावधान

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 126 और भारत साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 के अंतर्गत वकील और मुवक्किल के बीच पेशेवर रूप से की गई सभी संचारों को सख्ती से संरक्षित किया गया है। ये प्रावधान वकील को किसी भी दस्तावेज या संचार को बिना मुवक्किल की अनुमति के उजागर करने से रोकते हैं।

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यह गोपनीयता न्यायिक व्यवस्था के लिए आवश्यक मानी जाती है, जिससे मुवक्किल अपने अधिवक्ता से निर्भय होकर बातचीत कर सके।

हालिया न्यायिक और संस्थागत प्रतिक्रियाएं

हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों को समन भेजे जाने के मामले में यह विषय राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया। इन वकीलों ने केवल कानूनी सलाह दी थी। सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) सहित वकील समुदाय ने इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद ईडी ने समन वापस ले लिए और यह निर्देश जारी किया कि अधिवक्ता को समन केवल ईडी निदेशक की पूर्व अनुमति से ही भेजा जाएगा।

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इसके अतिरिक्त, केरल हाईकोर्ट ने भी हाल में स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 179(1) के अंतर्गत पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी आरोपी के वकील को बुलाकर मुवक्किल-वकील संवाद की जानकारी मांगे। अदालत ने कहा कि ऐसी कार्रवाई मुवक्किल के प्रतिनिधित्व के अधिकार और वकीलों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

अदालत ने दो टूक कहा कि पुलिस के पास वकीलों को गोपनीय संचार प्रकट करने हेतु समन भेजने का कोई अधिकार नहीं है।

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