बॉम्बे हाईकोर्ट ने पालघर से बीजेपी विधायक राजेंद्र गावित के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई प्रत्याशी बहुविवाह के संबंध में पारंपरिक या जनजातीय प्रथाओं के तहत ईमानदारी से जानकारी देता है, तो उसे चुनावी गड़बड़ी नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की एकल पीठ ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि गावित, जो भील जनजाति से आते हैं, ने अपने नामांकन हलफनामे में दोनों पत्नियों की जानकारी, पैन कार्ड और आयकर विवरण सहित, पूरी पारदर्शिता से प्रस्तुत की थी। अदालत ने इसे “सत्यनिष्ठ और स्वैच्छिक खुलासा” बताया।
अदालत ने कहा, “ऐसे कई मामले हो सकते हैं जहां किसी विशेष धर्म या समुदाय के उम्मीदवार, जिसमें बहुविवाह की अनुमति है, ने एक से अधिक विवाह किए हों। ऐसे मामलों में यदि नामांकन पत्र में सच्चाई बताई गई हो, तो उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता।” अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे आधार पर अयोग्यता ठहराना भेदभावपूर्ण होगा और इससे संपूर्ण समुदायों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर असर पड़ेगा।

यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और पालघर के मतदाता सुधीर जैन ने दाखिल की थी। उन्होंने दावा किया था कि गावित की दूसरी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अवैध है, और दूसरी पत्नी रूपाली गावित का उल्लेख करना गलत घोषणा है।
राजेंद्र गावित की ओर से दलील दी गई कि उन्होंने जो भी जानकारी दी है, वह पूरी तरह सत्य है और उनकी जनजातीय परंपराओं के अनुरूप है, जहां बहुविवाह को सामाजिक रूप से स्वीकार्यता प्राप्त है। अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि यदि प्रत्याशी हलफनामे में किसी भी प्रकार का अतिरिक्त कॉलम जोड़कर सच्ची जानकारी देता है, तो वह चुनाव नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस स्तर पर दूसरी शादी की वैधता की जांच आवश्यक नहीं है, क्योंकि विचारणीय मुद्दा केवल यह है कि क्या दी गई जानकारी चुनाव को प्रभावित करती है।
गावित की जीत को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने यह दोहराया कि प्रत्याशी द्वारा नामांकन पत्र में पारदर्शिता से की गई सूचना — भले ही वह परंपरागत रूप से असामान्य हो — उसे चुनाव कानूनों के तहत अयोग्य नहीं बनाती, विशेषकर जब वह संबंधित समुदाय की स्वीकृत परंपराओं से मेल खाती हो।