भारत में विदेशी वकीलों की एंट्री से अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को मिलेगा बढ़ावा: मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने लंदन में “भारत-ब्रिटेन वाणिज्यिक विवादों का मध्यस्थता के माध्यम से निपटारा” विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) का हालिया निर्णय, जिसमें विदेशी कानून फर्मों और वकीलों को भारत में गैर-विवादात्मक मामलों में काम करने की अनुमति दी गई है, देश को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का एक आकर्षक केंद्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “बार काउंसिल ऑफ इंडिया का यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के समाधान पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।”

उन्होंने बताया कि 14 मई, 2025 को बीसीआई ने “विदेशी वकीलों और विधि फर्मों के पंजीकरण और विनियमन हेतु नियम” अधिसूचित किए। इन नियमों के तहत विदेशी वकीलों को केवल गैर-विवादात्मक मामलों — जैसे कि विदेशी क़ानून, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और मध्यस्थता (विशेष रूप से सीमा पार लेन-देन और अंतरराष्ट्रीय विवादों से संबंधित) — में भाग लेने की अनुमति होगी।

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मुख्य न्यायाधीश गवई ने यह स्पष्ट किया कि नए नियमों के तहत विदेशी वकील भारत में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में भाग ले सकते हैं, बशर्ते वह मध्यस्थता विदेशी या अंतरराष्ट्रीय क़ानून से संबंधित हो। उन्होंने कहा, “इससे भारत को एक प्रभावशाली मध्यस्थता गंतव्य के रूप में बढ़ावा मिलेगा, जबकि भारतीय विधि पेशेवरों के अधिकारों से कोई समझौता नहीं होगा।”

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ज्ञात हो कि पूर्व में विदेशी कानून फर्मों को भारत में न तो विवादात्मक और न ही गैर-विवादात्मक मामलों में कार्य करने की अनुमति थी, जब तक कि वे एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और अन्य लागू नियमों की शर्तों को पूरा न कर लें।

नए कदम के प्रभाव पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “बार काउंसिल ऑफ इंडिया का यह निर्णय भारतीय मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे देश में मध्यस्थता की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।”

भारत और ब्रिटेन की व्यापारिक एवं विधिक समुदायों के बीच बढ़ते सहयोग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह मैत्रीपूर्ण संबंध दोनों देशों में मध्यस्थता के ढांचे को विस्तार देने में सहायक सिद्ध होगा।

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मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा, “यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का एक अग्रणी केंद्र बनना है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत में गुणवत्तापूर्ण, स्वतंत्र और निष्पक्ष मध्यस्थों की उपलब्धता होनी चाहिए — न केवल वास्तविकता के रूप में, बल्कि धारणा के रूप में भी।”

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय वकीलों में वैश्विक स्तर पर मांग वाले मध्यस्थ बनने की अपार संभावना है, लेकिन यह संभावना अब तक पूर्ण रूप से साकार नहीं हो सकी है।

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यह सम्मेलन भारत और ब्रिटेन के बीच सीमा पार विवादों के समाधान पर केंद्रित था, जिसमें दोनों देशों के वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों, मध्यस्थों और विधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया।

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