वारंट जारी होने पर गिरफ्तारी के आधार अलग से बताने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जब किसी व्यक्ति को वारंट के तहत गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तारी के कारणों को अलग से बताने की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वारंट स्वयं गिरफ्तारी का पर्याप्त आधार होता है। यह निर्णय न्यायालय ने कासिरेड्डी उपेंदर रेड्डी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए दिया, जिन्होंने अपने पुत्र केसीरेड्डी राजा शेखर रेड्डी की गिरफ्तारी को चुनौती दी थी।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हबीस कॉर्पस) याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उनके पुत्र को आंध्र प्रदेश अपराध जांच विभाग (CID) द्वारा 21 अप्रैल 2025 को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था। यह गिरफ्तारी अपराध संख्या 21/2024 के तहत की गई थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धाराएँ 420, 409, 120-बी (अब भारतीय न्याय संहिता 2023 की धाराएँ 318, 316(5), 61(2)) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएँ लागू थीं। हाईकोर्ट ने 8 मई 2025 को याचिका खारिज कर दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

याचिकाकर्ता की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि:

  • गिरफ्तारी अवैध थी क्योंकि एफआईआर में नाम नहीं था और उनके पुत्र को गवाह के रूप में बुलाया गया था।
  • गिरफ्तारी के जो आधार दिए गए, वे अस्पष्ट थे और पर्याप्त जानकारी नहीं देते थे कि गिरफ्तारी क्यों की गई।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जो धाराएँ जोड़ी गईं, उनके लिए आवश्यक पूर्व स्वीकृति (Section 17A) प्राप्त नहीं की गई थी।
  • हिरासत के दौरान कथित रूप से ‘मीडियेटर’ के माध्यम से दबाव डालकर राजनीतिक हस्तियों के खिलाफ झूठे बयान देने के लिए कहा गया।

राज्य का पक्ष

राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया कि:

  • गिरफ्तारी और रिमांड संविधान तथा विधि के अनुसार की गई थी, और गिरफ्तारी के दस्तावेज समय पर दिए गए।
  • आरोपी को दिए गए गिरफ्तारी के आधारों में स्पष्ट रूप से 2019-2024 के दौरान आंध्र प्रदेश शराब व्यापार में ₹3,200 करोड़ के भ्रष्टाचार में संलिप्तता का वर्णन था।
  • आरोपी, एक आईटी सलाहकार था, और उसका कार्यक्षेत्र मद्य नीति से संबंधित नहीं था; इसलिए भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी।
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न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 21 और 22, तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धाराओं 47 और 48 की व्याख्या करते हुए कहा कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को दिए गए कारण पर्याप्त और सारगर्भित थे।

न्यायालय ने कहा:

“गिरफ्तारी के समय जो आधार दिए गए थे, वे इस स्तर तक पर्याप्त हैं कि व्यक्ति को पता चल सके कि उस पर किस प्रकार के आरोप हैं और उसे क्यों हिरासत में लिया गया है।”

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2025 SCC OnLine SC 269) मामले में गिरफ्तारी के कोई आधार नहीं बताए गए थे, जबकि इस मामले में गिरफ्तारी के स्पष्ट आधार प्रस्तुत किए गए थे।

पीठ ने कहा कि जब किसी आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है और मजिस्ट्रेट रिमांड देता है, तो यह मान लिया जाता है कि गिरफ्तारी के कारण विधिवत रूप से बताए गए हैं। इस संदर्भ में न्यायालय ने कहा:

“अनुच्छेद 22(1) के अंतर्गत गिरफ्तारी के आधार बताना कोई औपचारिकता नहीं बल्कि संवैधानिक दायित्व है। परंतु जब गिरफ्तारी मजिस्ट्रेट के आदेश पर होती है, तो आधार अलग से बताने की आवश्यकता नहीं होती।”

निर्णय

न्यायालय ने हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए अपील को खारिज कर दिया और कहा:

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“हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गिरफ्तारी के समय जो आधार दिए गए थे, वे पर्याप्त और सार्थक थे, और विहान कुमार निर्णय के अनुच्छेद 21(b) की शर्तों को पूरा करते हैं।”

हालाँकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि आरोपी को नियमित जमानत के लिए सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है, और कोई भी लंबित जमानत याचिका शीघ्र निपटाई जानी चाहिए।

कासिरेड्डी उपेंदर रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य, आपराधिक अपील संख्या 2808/2025 (SLP (Crl.) No. 7746/2025)

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