उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य के खनन सचिव को निर्देश दिया कि वह स्टोन क्रशर इकाइयों के लिए आबादी और कृषि भूमि से दूर एक अलग ज़ोन निर्धारित करें। यह निर्देश स्थानीय निवासियों द्वारा उठाई गई पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के मद्देनज़र दिया गया है।
मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने आदेश दिया कि खनन विभाग छह सप्ताह के भीतर ऐसे स्थानों की पहचान कर उन्हें चिह्नित करे और एक हलफनामे के रूप में रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करे।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगले आदेश तक किसी भी नए स्टोन क्रशर की स्थापना की अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह आदेश फतेह टांडा गांव (जिला देहरादून) के निवासी महेंद्र सिंह और अन्य ग्रामीणों की याचिका पर पारित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गांव के पास स्थित बालाजी स्टोन क्रशर की गतिविधियों से खेतों की फसल पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।
हाईकोर्ट के इस आदेश को विकास कार्यों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।