मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि 2017 में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन ब्लास्ट मामले में नाबालिग आरोपी का मुकदमा विशेष एनआईए कोर्ट में नहीं, बल्कि बाल न्यायालय में चलेगा।
यह आदेश भोपाल के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा भेजे गए एक संदर्भ के जवाब में आया, जिसमें यह स्पष्ट करने की मांग की गई थी कि नाबालिग के मामले की सुनवाई किस न्यायालय में होनी चाहिए।
मार्च 2017 में शाजापुर जिले के जबदी स्टेशन पर हुए इस धमाके में दस लोग घायल हुए थे, जिनमें से तीन की हालत गंभीर थी। इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) कर रही है।
एकल पीठ के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी ने अपने फैसले में कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) में स्पष्ट “नन ऑब्स्टैंटे” प्रावधान है, जो किसी अन्य प्रभावी कानून पर वरीयता रखता है। “यह न्यायालय इस मत पर है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धाराएं एनआईए अधिनियम, 2008 पर प्रधानता रखेंगी,” आदेश में कहा गया।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि घटना के समय आरोपी की आयु 18 वर्ष से कम थी। इस आधार पर मामला पहले किशोर न्याय बोर्ड (JJB) को सौंपा गया था। बोर्ड ने 28 अप्रैल 2024 को पारित अपने आदेश में कहा कि भले ही आरोपी उस समय 17 वर्ष का था, लेकिन वह मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम था और अपने कृत्य के परिणामों को समझने की क्षमता रखता था।
इसके आधार पर मामला बाल न्यायालय को सौंप दिया गया, लेकिन चूंकि वह न्यायालय एनआईए अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं था, इसलिए संदर्भ भेजकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई।
इस पर हाईकोर्ट ने कहा, “इस मामले की सुनवाई का अधिकार विशेष एनआईए कोर्ट को नहीं, बल्कि बाल न्यायालय को प्राप्त होगा।”
यह निर्णय ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जहां किसी विशेष कानून के तहत दर्ज मामलों में आरोपी की आयु 18 वर्ष से कम होती है।