फोटो आइडेंटिफिकेशन के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशनों द्वारा शुल्क वसूली पर कसा शिकंजा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि कोर्ट में दाखिल हलफनामों के फोटो आइडेंटिफिकेशन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। कोर्ट ने बार एसोसिएशनों द्वारा वसूले जा रहे इस शुल्क को गैरकानूनी और संविधान में प्रदत्त न्याय तक पहुँच के अधिकार के विरुद्ध बताया। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने रिट-सी संख्या 3389/2025 (मेसर्स राजधानी इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट कंपनी, नई दिल्ली बनाम राज्य उत्तर प्रदेश) में पारित किया।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने न केवल नोटरी पब्लिक के समक्ष शपथबद्ध हलफनामों को अस्वीकार करने की प्रक्रिया को चुनौती दी, बल्कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशनों द्वारा ₹400 से ₹500 तक वसूले जा रहे फोटो आइडेंटिफिकेशन शुल्क को भी अवैध ठहराया, जो किसी वैधानिक प्रावधान के बिना लिया जा रहा था।

इससे पूर्व कोर्ट ने हाईकोर्ट प्रशासन से स्पष्टिकरण मांगा था कि क्या नोटरी पब्लिक द्वारा शपथबद्ध हलफनामों को वैध माना जाएगा और वसूले जा रहे शुल्क का क्या कानूनी आधार है।

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पक्षकारों की दलीलें

हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता श्री गौरव मेहरोत्रा ने रजिस्ट्रार जनरल के निर्देशों के आधार पर बताया कि “नोटरी पब्लिक के समक्ष शपथबद्ध किसी भी हलफनामे के साथ दाखिल की गई याचिकाओं, आवेदनों आदि को अस्वीकार करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नोटरी एक्ट के तहत शपथबद्ध हलफनामे पूरी तरह वैध माने जाएंगे।

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फीस वसूली के संदर्भ में कोर्ट को अवगत कराया गया कि पीआईएल संख्या 55060/2015 और रिट-सी संख्या 33750/2022 में डिवीजन बेंच द्वारा ₹500 शुल्क वसूलने पर रोक लगाई जा चुकी थी, फिर भी इलाहाबाद और लखनऊ दोनों स्थानों पर यह प्रथा जारी है।

कोर्ट की सहायता कर रहे श्री एस.एम. सिंह रॉयकवार ने दलील दी कि यह शुल्क संविधान के तहत प्राप्त “न्याय तक पहुँच” के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने इसे कानूनविहीन बताया और कहा कि इससे खासकर गरीब वर्ग के याचिकाकर्ताओं के लिए न्याय की राह कठिन हो जाती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री जे.एन. माथुर ने हाईकोर्ट द्वारा प्रकाशित 272 संभावित आपत्तियों की सूची को बिना वैधानिक आधार के बताया और कहा कि इससे अधिवक्ताओं का समय बेवजह खराब होता है।

न्यायालय का विश्लेषण

कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट नियमावली, 1952 के अध्याय IV के नियम 2 और 3 की समीक्षा की, जो मुख्य न्यायाधीश को हलफनामों की सत्यता जांचने के लिए शुल्क निर्धारित करने की शक्ति देता है। न्यायालय द्वारा पारित प्रशासनिक आदेशों के अनुसार, फोटो आइडेंटिफिकेशन शुल्क ₹125 तक सीमित है और वह भी निर्धारित दिशानिर्देशों के अंतर्गत। इससे अधिक कोई राशि लेने की अनुमति नहीं है।

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न्यायमूर्ति भाटिया ने कहा, “कल्याणकारी उपायों को हलफनामों से जोड़ना स्पष्ट रूप से अवैध है,” और आदेश दिया कि “किसी भी स्थिति में फोटो आइडेंटिफिकेशन के लिए याचिकाकर्ताओं/अधिवक्ताओं से कोई राशि नहीं ली जाएगी।”

कोर्ट ने यह भी पुनः पुष्टि की कि नोटरी एक्ट, 1952 के तहत नियुक्त नोटरी पब्लिक द्वारा शपथबद्ध हलफनामे वैध हैं। विशेष रूप से, धारा 8(1)(e) में नोटरी को शपथ दिलाने और हलफनामा लेने का अधिकार दिया गया है।

दिए गए निर्देश

अंतरिम आदेश के रूप में, न्यायालय ने निर्देश दिया कि:

  • पूरे भारत में नोटरी पब्लिक के समक्ष शपथबद्ध हलफनामों के साथ दायर सभी याचिकाएं, आवेदन और अपील बिना किसी आपत्ति के स्वीकार की जाएं।
  • रजिस्ट्री और स्टाम्प रिपोर्टिंग अनुभाग इस आधार पर कोई आपत्ति न उठाए।
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन या अवध बार एसोसिएशन द्वारा फोटो आइडेंटिफिकेशन सेवा हेतु कोई शुल्क न लिया जाए।
  • यदि इन निर्देशों का उल्लंघन हुआ, तो संबंधित बार एसोसिएशनों और फोटो आइडेंटिफिकेशन केंद्रों का संचालन करने वाली संस्थाओं के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।
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कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि केरल हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई डिजिटल सत्यापन प्रणाली की तर्ज पर हलफनामा सत्यापन प्रक्रिया को सरल बनाने के प्रस्ताव पर विचार हेतु यह मामला माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।

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