सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी के एक मामले में 65 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देते हुए खेद व्यक्त किया कि इतनी साधारण प्रकृति के मामले में आरोपी को देश की सर्वोच्च अदालत तक आना पड़ा। आरोपी 50% दृष्टिबाधित हैं और पिछले सात महीनों से जेल में बंद थे।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 19 मई को आदेश पारित करते हुए कहा, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे मामलों में भी आरोपी को जमानत के लिए इस अदालत तक आना पड़ता है।” कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि मामले में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है।
पीठ ने निर्देश दिया कि आरोपी को एक सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए। ट्रायल कोर्ट को उचित शर्तों पर जमानत देने का आदेश दिया गया है।

आदेश में कहा गया, “ट्रायल कोर्ट आरोपी को नियमित रूप से हर सुनवाई की तारीख पर उपस्थित रहने और मुकदमे की शीघ्र सुनवाई में सहयोग करने की शर्त के साथ जमानत पर रिहा करे।”
यह मामला भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जालसाजी किए गए दस्तावेजों का उपयोग) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज किया गया है। सभी धाराएं मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न्याय प्रणाली में जमानत मिलने में होने वाली देरी और वृद्ध तथा दिव्यांग आरोपियों पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को रेखांकित करती है।