सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के म्याना थाना क्षेत्र में पुलिस हिरासत में देव पारधी की मौत के मामले की जांच स्थानीय पुलिस से लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 15 मई 2025 को यह आदेश पारित करते हुए कहा कि इस मामले में पुलिस द्वारा की गई कथित बर्बरता, गवाह को डराने की कोशिश और डॉक्टरों पर दबाव स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि जांच निष्पक्ष नहीं हो रही है।
मामला क्या है
घटना की शुरुआत 3 जून 2024 को दर्ज एफआईआर संख्या 232/2024 से हुई, जिसमें गांव भीदरा निवासी भगवंत सिंह ने चोरी और घर में रात में घुसपैठ की शिकायत दर्ज कराई थी। देव पारधी की शादी 14 जुलाई 2024 को प्रस्तावित थी और 13 जुलाई को उनके घर पर हल्दी की रस्म चल रही थी।
इस दौरान 30 से 40 पुलिसकर्मी कई गाड़ियों और मोटरसाइकिलों में वहां पहुंचे और परिवार वालों के विरोध के बावजूद देव पारधी और उनके चाचा गंगाराम पारधी को जबरन हिरासत में ले लिया। आरोप है कि मौके पर महिलाओं और बच्चों तक के साथ बदसलूकी की गई। दोनों को बिना किसी वारंट के झागर चौकी ले जाया गया और उन्हें सीसीटीवी रहित पुराने थाने में रखा गया।
हिरासत में यातना और मौत
अपीलकर्ताओं ने आरोप लगाया कि देव पारधी को रस्सियों से लटकाया गया, ठंडा पानी डाला गया, मिर्च पाउडर, पेट्रोल, नमक और गर्म पानी से यातनाएं दी गईं। पुलिस ने उनसे चोरी स्वीकारने का दबाव डाला। जब देव बेसुध हो गए, तब अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया।
गंगाराम पारधी को 15 जुलाई को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जबकि उन्हें पहले ही 24 घंटे से अधिक समय तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था।
जांच की स्थिति और FIR
देव की मौत के बाद उनके परिवार द्वारा शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया गया लेकिन स्थानीय पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। बाद में मजिस्ट्रेटी जांच के बाद एफआईआर संख्या 341/2024 दर्ज हुई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, 115(2) और 3(5) में मामला दर्ज किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आठ महीने बीतने के बाद भी किसी भी आरोपी पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
साथ ही, देव के चाचा और मुख्य चश्मदीद गवाह गंगाराम पारधी पर एक के बाद एक कई आपराधिक मामलों में एफआईआर दर्ज की गई जिससे उनकी गवाही को प्रभावित किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
पीठ ने कहा:
“यह एक ऐसा मामला है जहां ‘nemo judex in causa sua’ सिद्धांत लागू होता है, यानी कोई व्यक्ति अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता।”
न्यायालय ने कहा कि:
“स्थानीय पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं है और अगर जांच उन्हीं के हाथ में रही तो अभियोजन प्रभावित हो सकता है। यह स्पष्ट है कि पुलिस अपने ही अधिकारियों को बचा रही है।”
पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि:
“मेडिकल बोर्ड द्वारा पोस्टमार्टम में चोटों के बावजूद मौत का कारण न बताना यह दर्शाता है कि डॉक्टरों पर भी पुलिस का दबाव था।”
कोर्ट के निर्देश
- एफआईआर संख्या 341/2024 की जांच तत्काल प्रभाव से CBI को सौंपी गई।
- जिम्मेदार पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी एक माह के भीतर करने का आदेश।
- 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश।
- गंगाराम पारधी को ग्वालियर हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गई।
- राज्य सरकार को गंगाराम पारधी की गवाही के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश — चाहे वे जेल में हों या ज़मानत पर बाहर।
पीठ ने यह भी कहा:
“ऐसा प्रतीत होता है कि गंगाराम पारधी को बार-बार झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है ताकि उन्हें लंबे समय तक हिरासत में रखा जाए और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गवाही देने से रोका जा सके।”