सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को करवा चौथ पर्व को सभी महिलाओं — चाहे वे विवाहित हों या नहीं — के लिए अनिवार्य रूप से मनाने की मांग करने वाली जनहित याचिका को सख्त टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने याचिका को “प्रेरित” बताते हुए कहा कि यह “ऐसे लोगों द्वारा प्रायोजित है जो स्वयं सामने नहीं आते।”
करवा चौथ एक पारंपरिक त्योहार है जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय से चंद्रमा उदय तक उपवास रखकर मनाती हैं। याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को यह निर्देश देने की मांग की थी कि इस पर्व को सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य किया जाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका में ऐसा कोई आधार नहीं है जिससे यह साबित हो कि किसी महिला को — चाहे वह किसी भी वर्ग या समुदाय से हो — इस त्योहार को मनाने से रोका जा रहा है। पीठ ने टिप्पणी की, “याचिकाकर्ता यह दिखाने में असफल रहे हैं कि ऐसा कौन सा कानून है जो किसी महिला को करवा चौथ मनाने से रोकता है।”
अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की याचिकाएं न तो जनहित से जुड़ी होती हैं और न ही इनका कोई संवैधानिक आधार होता है। “इस प्रकार की याचिकाएं न्यायिक प्रणाली को अनावश्यक रूप से बोझिल बनाती हैं और वास्तविक जनहित के मामलों से ध्यान भटकाती हैं।”
इससे पहले पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इसी तरह की याचिका को “तुच्छ” करार देते हुए ₹1,000 का जुर्माना लगाया था और कहा था कि याचिका में कोई कानूनी आधार नहीं है और याचिकाकर्ता ने खुद ही इसे वापस ले लिया था।