दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों को निशाना बनाकर भेजी जा रही फर्जी बम धमकियों के परिप्रेक्ष्य में डार्क वेब और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) के इस्तेमाल को लेकर कोई विशेष निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने कहा कि यह मामला कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और संबंधित अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से भली-भांति अवगत हैं।
सरकार और पुलिस ने SOP दाखिल की, अदालत ने अवमानना याचिका बंद की
यह टिप्पणी उस अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान आई जिसे अधिवक्ता अर्पित भार्गव ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और पुलिस आयुक्त के खिलाफ दायर किया था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि नवंबर 2024 के अदालती निर्देशों के बावजूद अधिकारियों ने बम धमकियों से निपटने के लिए समग्र कार्ययोजना और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) नहीं बनाई।

अदालत ने याचिका खारिज करते हुए सरकार की उस दलील को स्वीकार किया कि स्कूलों में बम धमकियों से निपटने के लिए विस्तृत SOP 16 मई को अधिसूचित कर लागू कर दी गई है। शिक्षा निदेशालय ने अदालत को बताया कि SOP में सीसीटीवी कैमरे लगवाना, निकासी योजना बनाना, मॉक ड्रिल कराना, और हर माह सुरक्षा जांच रिपोर्ट ज़िला प्रशासन को सौंपना जैसे कई कदम शामिल हैं।
दिल्ली पुलिस की ओर से अधिवक्ता फार्मान अली ने बताया कि SOP में पुलिस की भी कई सिफारिशें शामिल हैं और इसे लागू करने के लिए नया परिपत्र शीघ्र ही जारी किया जाएगा। अदालत ने स्वीकार किया कि यह SOP रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के चारों चरणों को कवर करती है और इसे छह महीने में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
“डार्क वेब और VPN एक वैश्विक चुनौती, अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती”
याचिकाकर्ता की यह दलील कि SOP में डार्क वेब और VPN से उत्पन्न हो रही फर्जी धमकियों का समाधान नहीं किया गया है, को खारिज करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि यह नीति निर्धारण का मामला है। न्यायमूर्ति दयाल ने कहा, “ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए संबंधित संस्थाएं पहले से ही सजग हैं। हम आपकी मांग पर कार्यपालिका को कोई विशेष दिशा-निर्देश नहीं दे सकते। उन्हें अपनी जिम्मेदारी का भान है।”
अदालत ने नवंबर 2024 में की गई अपनी पिछली टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि “डार्क वेब और VPN के ज़रिए की जा रही फर्जी धमकियाँ केवल दिल्ली या भारत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक वैश्विक कानून प्रवर्तन चुनौती है।”
पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उपाय
SOP के अनुसार, प्रत्येक स्कूल प्रमुख को मासिक सुरक्षा चेकलिस्ट जमा करनी होगी, जिसमें मॉक ड्रिल की स्थिति, उपकरणों की स्थिति और अद्यतन आपातकालीन संपर्क सूची शामिल होगी। अदालत ने कहा कि इससे स्कूलों में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहेगी।
याचिका की पृष्ठभूमि: DPS मथुरा रोड को मिली थी धमकी
यह अवमानना याचिका 2023 में दिल्ली पब्लिक स्कूल, मथुरा रोड को मिली फर्जी बम धमकी की घटना के बाद दायर की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता बीना शॉ एन. सोनी ने दलील दी कि अधिकारियों ने अदालत के पहले के आदेशों की “साफ अवहेलना” की है और जनहित में प्रभावी कदम नहीं उठाए।
दिल्ली पुलिस की ओर से दाखिल पहले के हलफनामे में बताया गया था कि राजधानी में केवल पांच बम निष्क्रियकरण दस्ते और 18 विस्फोटक जांच दल हैं, जो 4,600 से अधिक स्कूलों की निगरानी करते हैं — जिसे याचिकाकर्ता ने अपर्याप्त बताया।
हालांकि अदालत ने डार्क वेब और VPN जैसे गुमनाम तकनीकी माध्यमों से उत्पन्न हो रही सुरक्षा चुनौतियों की गंभीरता को स्वीकार किया, लेकिन स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में विशिष्ट तकनीकी रणनीतियाँ बनाना कार्यपालिका की ज़िम्मेदारी है। SOP के लागू होने के साथ, अदालत ने आशा जताई कि सभी पक्ष जिम्मेदारी से कार्य करेंगे और छात्रों एवं स्कूल स्टाफ की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।