ब्रेकिंग: सभी सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जजों को समान पेंशन मिलेगी, सेवा में आने के तरीके या कार्यकाल का फर्क नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट किया कि देश के सभी सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जजों को पूर्ण और समान पेंशन का अधिकार है, भले ही उन्होंने बार से आए हों या न्यायिक सेवा से, और चाहे उनकी नियुक्ति किसी भी तिथि को हुई हो। न्यायालय ने “वन रैंक वन पेंशन” के सिद्धांत को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पर लागू करने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह निर्णय एक स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) मामले में सुनाया, जिसमें पूर्व हाईकोर्ट जजों द्वारा दायर कुछ याचिकाओं को भी साथ में सुना गया।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

पीठ ने केंद्र सरकार को निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को ₹15 लाख वार्षिक पूर्ण पेंशन प्रदान की जाए।
  2. अन्य सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जजों (अतिरिक्त जजों सहित) को ₹13.5 लाख वार्षिक पेंशन दी जाए।
  3. “वन रैंक वन पेंशन” का सिद्धांत सभी सेवानिवृत्त जजों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वे बार से आए हों या जिला न्यायपालिका से।
  4. जिला न्यायपालिका से आए हाईकोर्ट जजों के मामले में, यदि सेवा में कोई अंतराल (ब्रेक) रहा हो, तो भी उन्हें पूर्ण पेंशन का अधिकार मिलेगा।
  5. जिन जजों ने न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के लागू होने के बाद जिला न्यायपालिका में प्रवेश किया और बाद में हाईकोर्ट जज बने, उन्हें भी पूर्ण पेंशन दी जाएगी। उनके NPS योगदान की पूरी राशि और उस पर लाभांश संबंधित राज्य सरकार द्वारा लौटाई जाएगी।
  6. हाईकोर्ट के सेवारत जज की मृत्यु की स्थिति में, उनके परिजनों को पारिवारिक पेंशन मिलेगी, चाहे वह स्थायी जज रहे हों या अतिरिक्त।
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“संवैधानिक पद की गरिमा समान पेंशन की मांग करती है”

मुख्य न्यायाधीश डी.आर. गवई ने निर्णय सुनाते हुए कहा:

“एक बार जब कोई व्यक्ति न्यायिक पद पर नियुक्त होता है, तो उसके प्रवेश का स्रोत महत्त्व नहीं रखता। उस संवैधानिक पद की गरिमा यह मांग करती है कि सभी जजों को समान पेंशन दी जाए।”

उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए यह ज़रूरी है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी सभी जजों को समान टर्मिनल लाभ मिलें

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न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की:

“जब सेवा के दौरान सभी जजों को समान व्यवहार मिलता है, तो सेवानिवृत्ति के बाद लाभों में कोई भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।”

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