अपीलकर्ता को अपनी ही अपील में और अधिक कठिनाई में नहीं डाला जा सकता; राज्य की अपील के बिना हाईकोर्ट सज़ा नहीं बढ़ा सकता: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा द्वारा पारित निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि किसी दोषसिद्ध व्यक्ति ने स्वयं सजा व दोष के विरुद्ध अपील दायर की है, तो राज्य, पीड़िता या शिकायतकर्ता द्वारा सजा-वृद्धि की अपील न होने पर हाईकोर्ट उस सजा को नहीं बढ़ा सकता

न्यायालय ने कहा कि अपील का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार प्रयोग करने पर अभियुक्त को अधिक दंडित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा-वृद्धि को अवैध ठहराते हुए उसे निरस्त कर दिया और अपीलकर्ता की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जिसने पहले ही ग्यारह वर्ष से अधिक कारावास भुगत लिया था।

पृष्ठभूमि

सचिन नामक अपीलकर्ता को 24 नवम्बर 2014 को विशेष न्यायालय, वरोरा द्वारा एक चार वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार करने के आरोप में POCSO अधिनियम की धारा 3(a) सहपठित धारा 4 तथा IPC की धारा 376 के तहत 7 वर्षों के कठोर कारावास और ₹2000 जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

राज्य सरकार या पीड़िता द्वारा इस सजा को चुनौती नहीं दी गई।

अपील संख्या 30/2015 के अंतर्गत अपीलकर्ता ने अपने दोष और सजा के विरुद्ध बंबई हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, धारा 5(m) व 6 POCSO अधिनियम तथा धारा 376(2)(i) IPC जैसे अधिक कठोर प्रावधानों का हवाला देकर मामला पुनः विशेष न्यायालय को सजा बढ़ाने के लिए भेज दिया, जिसके बाद विशेष न्यायालय ने अपीलकर्ता को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां 

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही की तीव्र आलोचना की और कहा कि यह प्रक्रियात्मक विधि एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है

“किसी अभियुक्त द्वारा दोष व दंड को चुनौती देने हेतु दायर अपील में, हाईकोर्ट अपनी पुनरीक्षणीय शक्ति का प्रयोग कर सजा नहीं बढ़ा सकता।”

“कोई भी अपीलकर्ता अपनी ही अपील में पहले से बदतर स्थिति में नहीं डाला जा सकता।” (पैरा 33)

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धारा 386 CrPC के तहत अपीलीय अधिकार की सीमाओं पर न्यायालय ने कहा:

“अदालत… दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील में… सजा की प्रकृति या अवधि को बदल सकती है, लेकिन उसे बढ़ा नहीं सकती।” (पैरा 23)

धारा 401 CrPC के तहत पुनरीक्षणाधिकार पर न्यायालय ने कहा:

“भले ही अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिया गया हो… हाईकोर्ट, अभियुक्त द्वारा दायर अपील की सुनवाई करते समय, धारा 401 CrPC के तहत पुनरीक्षणीय अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता।” (पैरा 29.1)

संवैधानिक दृष्टिकोण पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा:

“आपराधिक मामलों में अपील का अधिकार न केवल वैधानिक है बल्कि एक संवैधानिक अधिकार भी है।”

“कोई अभियुक्त, यदि अपनी अपील के अधिकार का प्रयोग करता है, तो उसे पहले से अधिक कठोर दंड नहीं दिया जा सकता।”

निर्णय और आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने:

हाईकोर्ट के दिनांक 26.02.2016, 02.03.2016, और 08.03.2016 के आदेशों को रद्द कर दिया।

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28.04.2016 को विशेष न्यायालय द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को भी रद्द कर दिया।


24.11.2014 को विशेष न्यायालय द्वारा दी गई 7 वर्षों की मूल सजा को पुनः बहाल किया।
यह पाया कि अपीलकर्ता ने पहले ही 11 वर्ष 8 महीने की सजा काट ली है, जो मूल सजा से कहीं अधिक है।

“हम संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए आदेश देते हैं कि अपीलकर्ता को तत्काल जेल से रिहा किया जाए।” 

निर्णय का संदर्भ

Sachin vs State of Maharashtra,
Criminal Appeal Nos. ___ of 2025
(arising out of SLP (Crl.) Nos. 4795–4797 of 2025)

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