सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट में फैसलों में हो रही देरी पर एक बार फिर गंभीर चिंता जताई और कहा कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति बनती जा रही है। इस बार मामला तीन होम गार्ड अभ्यर्थियों से जुड़ा है, जिनकी याचिकाएं अप्रैल 2023 से विचाराधीन हैं और फैसला सुरक्षित रखे जाने के बावजूद अब तक सुनाया नहीं गया है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता निखिल गोयल ने बताया कि झारखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस मामले में अंतिम सुनवाई 6 अप्रैल 2023 को की थी और मौखिक रूप से कहा था कि आदेश सुरक्षित रखा जा रहा है, लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी फैसला नहीं आया।
गोयल ने पीठ को बताया, “यह एक चलन बन गया है, जहां आदेश सुरक्षित रखने के बाद भी फैसले नहीं सुनाए जा रहे हैं।” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इससे पहले चार आजीवन कारावास भुगत रहे दोषियों के मामले में भी ऐसी ही देरी हुई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकालत कर रहीं अधिवक्ता वान्या गुप्ता ने बताया कि 2017 में विज्ञापित 1,000 से अधिक होम गार्ड पदों की भर्ती झारखंड सरकार द्वारा रद्द कर दी गई थी, जिसके बाद 70 से अधिक अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इनमें से तीन याचिकाकर्ता भी शामिल हैं जिनके मामले 2021 से लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से उस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई जो झारखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा एक अन्य मामले में प्रस्तुत की गई थी। रिपोर्ट में केवल आपराधिक मामलों का उल्लेख था जबकि कोर्ट ने 5 मई के आदेश में स्पष्ट रूप से सभी प्रकार के मामलों—सिविल और आपराधिक—की जानकारी मांगी थी, जिनमें दलीलें पूरी हो चुकी हैं लेकिन फैसले सुरक्षित हैं।
पीठ ने कहा, “रजिस्ट्रार जनरल से यह अपेक्षा थी कि वे सिविल मामलों की रिपोर्ट भी प्रस्तुत करें, जैसा कि 5 मई के आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया गया था… अब सभी पीठों द्वारा सुरक्षित रखे गए सिविल मामलों की एक समग्र रिपोर्ट पेश की जाए।”
सुप्रीम कोर्ट ने अब झारखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करते हुए निर्देश दिया है कि वे उन सभी लंबित सिविल मामलों की विस्तृत रिपोर्ट पेश करें जिनमें आदेश सुरक्षित हैं लेकिन फैसले नहीं सुनाए गए हैं—जिसमें तीन याचिकाकर्ताओं के मामले भी शामिल हों।
मामले की अगली सुनवाई 23 मई को होगी।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब झारखंड हाईकोर्ट न्यायिक देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट की नजरों में आया है। 5 मई को ही एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा “अनावश्यक अवकाश” लेने पर चिंता जताई थी और प्रदर्शन ऑडिट तक कराने का सुझाव दिया था। आजीवन कारावास भुगत रहे अभियुक्तों की ओर से अधिवक्ता फ़ौज़िया शकील ने बताया था कि उनके मामले में भी फैसला 2022 में सुरक्षित रखा गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही फैसला आया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे का दायरा बढ़ाया और सभी उच्च न्यायालयों से रिपोर्ट तलब की कि किन-किन मामलों में दलीलें पूरी होने के बाद भी फैसले सुरक्षित रखे गए हैं और अब तक सुनाए नहीं गए हैं। अदालत ने इस समस्या को “गंभीर महत्व का” बताया जो “आपराधिक न्याय व्यवस्था की जड़ पर असर डालती है” और मामले की व्यापक सुनवाई जुलाई में तय की है।
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