सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वदत्त पर्यावरणीय मंजूरियों को बताया असंवैधानिक, पर्यावरण के प्रति गैर-जिम्मेदार करार

भारत की पर्यावरण सुरक्षा व्यवस्था को सशक्त करने वाले एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा वर्ष 2021 में जारी उस कार्यालय ज्ञापन (OM) को रद्द कर दिया, जो नियमों का उल्लंघन कर चुके प्रोजेक्ट्स को पूर्वदत्त (retrospective) पर्यावरणीय मंजूरी देने की अनुमति देता था। न्यायालय ने इस नीति को “असंवैधानिक, मनमानी और अवैध” बताया।

‘पूर्वदत्त मंजूरी’ की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की पीठ ने यह सख्त टिप्पणी की कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के उल्लंघनों को वैध बनाने का प्रयास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 और पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण संगठन ‘वनाशक्ति’ द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें बिना पूर्व मंजूरी के शुरू किए गए औद्योगिक प्रोजेक्ट्स को बाद में मंजूरी देने की वैधता को चुनौती दी गई थी।

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पीठ ने कहा, “चतुराई से ‘पूर्वदत्त’ (ex post facto) शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन बिना इन शब्दों का उपयोग किए भी, इस ज्ञापन में उसी प्रकार की पूर्वदत्त मंजूरी देने का प्रावधान है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि 2021 का कार्यालय ज्ञापन इस न्यायालय के पूर्व निर्णयों का भी उल्लंघन करता है।

पूर्वदत्त मंजूरी भारतीय पर्यावरणीय कानून में ‘अजनबी अवधारणा’

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न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारतीय पर्यावरणीय विधिशास्त्र में पूर्वदत्त या पश्चातवर्ती पर्यावरणीय मंजूरी की कोई जगह नहीं है। “इस न्यायालय ने पहले ही यह निर्णायक रूप से कहा है कि पूर्वदत्त पर्यावरणीय मंजूरी का सिद्धांत पर्यावरणीय कानून और EIA अधिसूचना से पूर्णतः परे है,” पीठ ने कहा।

पर्यावरण संरक्षण: एक संवैधानिक जिम्मेदारी

न्यायमूर्ति ओका द्वारा लिखे गए निर्णय में यह दोहराया गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। उन्होंने लिखा, “इस न्यायालय ने कई निर्णयों में कहा है कि प्रदूषण रहित वातावरण में जीना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार का हिस्सा है।”

न्यायालय ने सरकार को भी इस मामले में जिम्मेदार ठहराया—“जैसे प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी है, वैसे ही केंद्र सरकार की भी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण की रक्षा करे।”

विकास बनाम पर्यावरण: न्यायालय की चेतावनी

पीठ ने जोर देते हुए कहा, “क्या ऐसा विकास संभव है जो पर्यावरण की कीमत पर हो? पर्यावरण का संरक्षण और उसका संवर्धन, विकास की अवधारणा का अभिन्न हिस्सा है।”

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प्रदूषण संकट का उल्लेख

अदालत ने दिल्ली और अन्य महानगरों में गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति का हवाला देते हुए चेताया, “हर वर्ष कम से कम दो महीनों के लिए दिल्लीवासी दमघोंटू वायु प्रदूषण से त्रस्त रहते हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक या अत्यंत खतरनाक श्रेणी में होता है।”

पूर्व में दी गई मंजूरियों को राहत

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के OM और उससे संबंधित परिपत्रों को रद्द कर दिया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि 2017 और 2021 की नीतियों के अंतर्गत पहले से दी गई मंजूरियों को इस चरण पर प्रभावित नहीं किया जाएगा।

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