दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), द्वारका द्वारा 32 छात्रों को निष्कासित किए जाने के आदेश पर रोक लगाने के संकेत दिए हैं। यह मामला गैर-अनुमोदित फीस वसूली को लेकर अभिभावकों और स्कूल प्रबंधन के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को फिर से न्यायिक और जनचर्चा के केंद्र में ले आया है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने छात्रों के अभिभावकों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को 19 मई तक स्थगित कर दिया, लेकिन यह भी कहा कि प्रथमदृष्टया स्कूल ने दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रियात्मक प्रावधानों का पालन नहीं किया है। अदालत ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि स्कूल ने छात्रों को रोल से हटाने से पहले उन्हें या उनके अभिभावकों को उत्तर देने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया, जैसा कि दिल्ली स्कूल शिक्षा नियमावली, 1973 के नियम 35(4) में अनिवार्य किया गया है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने टिप्पणी की, “आप नोटिस प्रस्तुत कीजिए। मुझे कोई ऐसा नोटिस दिखाइए जिसमें आपने छात्रों को सूचित किया हो कि यदि आपने फीस जमा नहीं की तो आपको 13 मई को रोल से हटा दिया जाएगा। मेरा मानना है कि मैं इस आदेश पर तुरंत रोक लगा दूंगा।”

अभिभावकों का कहना था कि उन्होंने स्वीकृत ट्यूशन फीस का भुगतान किया है लेकिन स्कूल द्वारा मांगी गई अतिरिक्त और गैर-अनुमोदित फीस देने से इनकार कर दिया था। इस मामले में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (DoE) ने हस्तक्षेप करते हुए अभिभावकों का समर्थन किया और 15 मई को डीपीएस द्वारका को निष्कासित छात्रों को तत्काल पुनः प्रवेश देने का आदेश दिया।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत में स्पष्ट किया, “हमारा रुख बिल्कुल साफ है — आप स्वीकृत फीस से एक भी पैसा अधिक नहीं वसूल सकते।”
DoE के आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि स्कूल का यह कदम अदालत के पूर्व निर्देशों का उल्लंघन है, जो बिना स्वीकृति के फीस वृद्धि और फीस के आधार पर छात्रों के साथ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। निदेशालय ने स्कूल को निष्कासन नोटिस वापस लेने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी छात्र के साथ कोई भेदभाव न हो।
स्कूल की ओर से पेश वकील ने जवाब में कहा कि किसी अदालत ने बिना फीस जमा किए छात्रों को फिर से नामांकन देने का आदेश नहीं दिया है। स्कूल का यह भी दावा था कि उन्होंने कारण बताओ नोटिस जारी किए थे, लेकिन अभिभावकों ने ऐसे किसी भी नोटिस की प्राप्ति से इनकार किया।
इससे जुड़े एक अन्य मामले में न्यायमूर्ति विकास महाजन की पीठ ने 102 अभिभावकों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई की, जिसमें दिल्ली सरकार से डीपीएस द्वारका के प्रशासन को अपने अधीन लेने की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि छात्रों को गैर-अनुमोदित फीस जमा न करने पर “प्रताड़ित” किया जा रहा है और सरकार तथा उपराज्यपाल से छात्रहित में हस्तक्षेप की अपील की गई।
न्यायमूर्ति महाजन ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे स्कूल को पक्षकार बनाएं।
यह मामला निजी स्कूलों द्वारा फीस निर्धारण और पारदर्शिता को लेकर अभिभावकों और प्रबंधन के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करता है, जो राजधानी में निजी शिक्षा की पहुंच और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
इस प्रकरण की अगली सुनवाई 19 मई को होनी है।
4o