सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक कंपनी को ₹15.90 लाख जारी करने का निर्देश दिया गया था, जबकि उस लेन-देन में धोखाधड़ी की आपराधिक जांच अभी जारी थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपने अंतर्निहित अधिकारों का प्रयोग करते समय हाईकोर्ट को तथ्यों की जांच कर ‘मिनी ट्रायल’ नहीं करना चाहिए।
यह फैसला न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने एनडीए सिक्योरिटीज लिमिटेड बनाम स्टेट (एनसीटी ऑफ दिल्ली) एवं अन्य (क्रिमिनल अपील संख्या ___ ऑफ 2025 @ विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 4379 ऑफ 2025) में सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 07.08.2015 को एनडीए सिक्योरिटीज लिमिटेड द्वारा दर्ज कराई गई एक आपराधिक शिकायत से उत्पन्न हुआ था, जो कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में पंजीकृत ट्रेडिंग सदस्य है। शिकायत दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत की गई थी, जिसके आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120बी के अंतर्गत एफआईआर दर्ज हुई।
शिकायत में आरोप था कि एक अज्ञात व्यक्ति ने कंपनी के ग्राहक ब्रिज मोहन गागरानी के नाम पर फोन कर 1 लाख शेयर (Ashutosh Paper Mills Ltd. के) खरीदने का आदेश दिया। बाद में जब ग्राहक से संपर्क किया गया तो उसने ऐसी किसी भी खरीद से इनकार किया। याचिकाकर्ता का आरोप था कि उसके एजेंट और शेयर विक्रेता ने मिलकर यह धोखाधड़ी की और इससे प्रतिवादी संख्या 2 को लाभ हुआ। इस पर बीएसई को ₹15.90 लाख की रकम रोकने का आग्रह किया गया।
निचली अदालतों में कार्यवाही
प्रतिवादी संख्या 2 ने बीएसई द्वारा रोकी गई राशि को रिलीज़ करने के लिए मजिस्ट्रेट अदालत में आवेदन दिया था, जिसे 16.09.2016 को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि उनकी भूमिका की जांच अभी लंबित है। इसके खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका भी 08.12.2016 को खारिज कर दी गई, जिसमें कहा गया कि राशि रिलीज़ करने से अपीलकर्ता के अधिकार प्रभावित होंगे।
इसके बाद प्रतिवादी संख्या 2 ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे 25.02.2025 को स्वीकार कर लिया गया और ₹15.90 लाख की राशि गारंटी पर जारी करने का आदेश दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी की सीमा का उल्लंघन किया है। न्यायालय ने कहा:
“हाईकोर्ट को प्रतिवादी संख्या 2 की संलिप्तता को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि जांच अभी पूरी नहीं हुई है।”
न्यायालय ने सीबीआई बनाम आर्यन सिंह (2023) 18 एससीसी 399 और धर्मबीर कुमार सिंह बनाम राज्य झारखंड (2025) 1 एससीसी 392 जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए दोहराया कि:
“यह विधि का स्थापित सिद्धांत है कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत अंतर्निहित अधिकारों का प्रयोग करते समय हाईकोर्ट को मिनी ट्रायल नहीं करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चार्जशीट में प्रतिवादी संख्या 2 को इस कथित धोखाधड़ी का मुख्य लाभार्थी बताया गया है और मुख्य आरोपी अमित जैन अभी भी फरार है। ऐसे में जांच पूरी होने से पहले राशि जारी करना अनुचित होगा।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने 25.02.2025 का दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए निर्देश दिया:
“प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा बेचे गए शेयरों की राशि ₹15.90 लाख की रकम ट्रायल के लंबित रहने तक बीएसई के पास सुरक्षित रहेगी।”
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है और ट्रायल कोर्ट को शीघ्र सुनवाई करने का निर्देश दिया।
अपील स्वीकार की गई और लंबित सभी आवेदनों का निस्तारण कर दिया गया।