“संक्षिप्त और सटीक”: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों को दी नसीहत – जमानत याचिका को मिनी ट्रायल न बनाएं

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में आरोपी विपिन तिवारी को ज़मानत प्रदान की, साथ ही वकीलों को यह चेतावनी भी दी कि वे जमानत सुनवाई को “मिनी ट्रायल” का रूप न दें। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने 8 मई 2025 को पारित 49-पैरा के विस्तृत आदेश में न्यायालय के समय के विवेकपूर्ण उपयोग और संक्षिप्त बहस की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

प्रकरण थाना लालगंज, ज़िला प्रतापगढ़ के केस क्राइम संख्या 317/2024 से संबंधित है, जिसमें आरोप था कि 5 अगस्त 2024 को आरोपी ने पुरानी जमीनी रंजिश के चलते एक बुलेट मोटरसाइकिल को सफेद बोलेरो से टक्कर मार दी, जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। एफआईआर एक दिन से अधिक (37 घंटे) की देरी से दर्ज की गई थी, और बोलेरो का न तो नंबर बताया गया, न ही कोई पहचान।

विपिन तिवारी ने अपनी ज़मानत याचिका में यह दावा किया कि घटना के समय वह लखनऊ स्थित हाईकोर्ट परिसर में मौजूद थे। उन्होंने अपने मोबाइल लोकेशन, कॉल डिटेल्स और फोटो हलफनामे सेंटर में खिंचवाए गए फोटो को साक्ष्य के रूप में पेश किया। उन्होंने सह-अभियुक्त सचिन मिश्रा को पहले ही मिली ज़मानत के आधार पर समानता (parity) का भी हवाला दिया।

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कोर्ट की टिप्पणियां

न्यायालय ने माना कि:

एफआईआर दर्ज करने में 37 घंटे की देरी हुई। घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज से न वाहन की पहचान हो सकी, न आरोपियों की। कॉल डिटेल्स से स्पष्ट था कि घटना के समय आरोपी लखनऊ हाईकोर्ट परिसर में मौजूद थे। मृतक और आरोपी परिवारों में जमीनी विवाद चल रहा था, और दोनों पक्षों के आपराधिक इतिहास रहे हैं।

इन तथ्यों के आधार पर, न्यायालय ने विपिन तिवारी को ज़मानत प्रदान की।

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न्यायिक चिंता: “यह मिनी ट्रायल नहीं है”

निर्णय के पैराग्राफ 47 से 49 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जहाँ न्यायालय ने वकीलों द्वारा ज़मानत याचिकाओं में अत्यधिक समय लेने और विस्तृत बहसों पर नाराज़गी व्यक्त की।

“यह ज़मानत याचिका संक्षिप्त आदेश में तय हो सकती थी… परंतु वादी के वकील ने लंबी बहस की… जबकि कोर्ट को मिनी ट्रायल नहीं करना होता।” — पैरा 47

न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि वकील का अपने मुवक्किल के हित में विस्तृत तर्क देना उचित था, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि एक न्यायाधीश को अन्य 44 नए और 200 सूचीबद्ध मामलों को भी सुनना होता है। इस प्रकार का लम्बा आदेश, न्यायालय के सीमित समय का अत्यधिक उपयोग करता है।

“इस लंबे आदेश के कारण न्यायालय का अनुचित समय खर्च हुआ… जिससे अन्य कई मामलों का नुकसान हुआ जो अब पूरा नहीं हो सकता।” — पैरा 48

बनवारी लाल कंचल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय का उल्लेख करते हुए, न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने कहा कि वकील और न्यायाधीश दोनों न्याय व्यवस्था के रथ के पहिए हैं, और वकीलों को न्यायिक कार्य में सहयोग करना चाहिए।

“मैं बार के सम्मानित सदस्यों से पुनः निवेदन करता हूँ कि वे अपनी दलीलों और याचिकाओं को संक्षिप्त और सटीक रखें।” — पैरा 49

मामला: विपिन तिवारी बनाम राज्य उत्तर प्रदेश

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न्यूट्रल सिटेशन: 2025:AHC-LKO:27009

निर्णय की तिथि: 8 मई 2025

पीठ: न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी

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