सुप्रीम कोर्ट ने जजों के सुनवाई से अलग होने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की याचिका खारिज की, कहा – फैसला करना सिर्फ संबंधित जज का विवेकाधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में उन याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने जजों के “रिक्यूज़ल” यानी किसी मामले से स्वयं को अलग करने के लिए दिशानिर्देश तय करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार का निर्णय पूरी तरह से संबंधित जज के विवेक पर निर्भर करता है।

पीठ ने कहा, “अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय के पूर्ण न्याय करने के अधिकार का प्रयोग जजों के रिक्यूज़ल के लिए दिशानिर्देश बनाने हेतु नहीं किया जा सकता।”

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने इससे पहले वर्ष 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जब उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना द्वारा तीन याचिकाओं से स्वयं को अलग करने की जांच की मांग की थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी प्रार्थनाएं “गलत संदेश” भेज सकती हैं, जिसके बाद याचिका वापस ले ली गई थी। हालांकि, याचिकाकर्ताओं को केवल रिक्यूज़ल पर दिशानिर्देशों को लेकर नई याचिका दाखिल करने की छूट दी गई थी।

शुक्रवार की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निशा तिवारी ने तर्क दिया कि रिक्यूज़ल के लिए कोई औपचारिक नियम नहीं होने से मनमानी हो सकती है और यह पारदर्शिता को प्रभावित करता है। उन्होंने अन्य देशों में अपनाए गए प्रावधानों का हवाला दिया, जहां जजों को संभावित टकरावों की पूर्व घोषणा करनी होती है।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य दिशानिर्देश तय करने की मांग को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया और कहा कि ऐसे निर्णय अंततः जज की निजी और पेशेवर विवेकशीलता पर आधारित होते हैं।

कोर्ट ने कहा, “जहां तक जज के रिक्यूज़ल का प्रश्न है, यह संबंधित जज का पूर्ण विवेकाधिकार है। यह उनके ऊपर है कि वे रिक्यूज़ल के कारणों का खुलासा करना चाहते हैं या नहीं।”

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हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश से संपर्क की अनुमति

याचिकाकर्ताओं ने यह भी शिकायत की कि न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना द्वारा रिक्यूज़ल के नौ महीने बीत जाने के बावजूद हाईकोर्ट में उनकी याचिका सूचीबद्ध नहीं हुई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें संबंधित हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश के समक्ष आवेदन देने की अनुमति दी।

कोर्ट ने निर्देश दिया, “हम याचिकाकर्ताओं को यह अनुमति देते हैं कि वे माननीय हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश से अपनी याचिका सूचीबद्ध करने का अनुरोध करें। हमें विश्वास है कि यदि ऐसा आवेदन दिया गया, तो मुख्य न्यायाधीश उचित पीठ को मामला सौंप देंगी।”

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