सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिजली अधिनियम की धारा 79 के तहत CERC के पास नियामक और प्रशासनिक दोनों प्रकार के अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (CERC) को बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 79 के तहत न केवल विवादों का न्यायिक निपटारा करने का अधिकार है, बल्कि यह आयोग नियामक (regulatory) और प्रशासनिक (administrative) कार्य भी कर सकता है। न्यायालय ने यह भी माना कि CERC द्वारा ट्रांसमिशन परियोजना में देरी के लिए मुआवज़ा देने का अधिकार उसकी नियामक शक्तियों का हिस्सा है।

यह फैसला न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की अध्यक्षता वाली पीठ ने पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड व अन्य [सिविल अपील संख्या 6847-6848/2025] में सुनाया।

पृष्ठभूमि

यह मामला पश्चिम क्षेत्र प्रणाली सुदृढ़ीकरण योजना (WRSS-XIV और WRSS-XVI) के तहत ट्रांसमिशन संपत्तियों के संचालन में देरी से जुड़ा है। पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (PGCIL) ने इंदौर सबस्टेशन पर ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया था, जिसकी आवश्यकता मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (MPPTCL) की ओर से व्यक्त की गई थी। समझौते के अनुसार MPPTCL को अपनी राज्य-स्तरीय ट्रांसमिशन लाइन समय पर पूरी करनी थी, लेकिन उसमें देरी हुई, जिससे PGCIL की परियोजना का उपयोग नहीं हो सका।

इस देरी को देखते हुए PGCIL ने CERC के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें उसने 2014 की टैरिफ विनियमों के तहत वाणिज्यिक संचालन तिथि (COD) की स्वीकृति और ट्रांसमिशन शुल्क निर्धारित करने की मांग की।

CERC ने यद्यपि प्रस्तावित COD को स्वीकृति दी, परन्तु देरी को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया। फिर भी, आयोग ने PGCIL को निर्माण के दौरान हुए व्ययों, द्रवित हर्जाना (liquidated damages) और अन्य खर्चों के लिए MPPTCL से मुआवज़ा मांगने की अनुमति दी।

MPPTCL ने इन आदेशों को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, भले ही अपीली remedy धारा 111 के तहत उपलब्ध थी।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख मुद्दों को चिन्हित करते हुए यह विचार किया कि क्या CERC की धारा 79 के तहत की गई कार्यवाहियाँ केवल न्यायिक (adjudicatory) हैं, या उसमें नियामक कार्य भी शामिल हैं।

न्यायालय ने स्पष्ट किया:

“धारा 79 के तहत CERC को नियमन (‘to regulate’), निर्धारण (‘to determine’) और विवाद निपटान (‘to adjudicate’) जैसे अलग-अलग कार्य सौंपे गए हैं, और ये सभी कार्य स्वतंत्र हैं। इसलिए, इसे केवल ‘adjudication’ की परिधि में नहीं समेटा जा सकता।”

न्यायालय ने PTC इंडिया लिमिटेड बनाम CERC [(2010) 4 SCC 603] और एनर्जी वॉचडॉग बनाम CERC [(2017) 14 SCC 80] जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यदि धारा 178 के तहत कोई विनियमन मौजूद नहीं है, तो भी CERC धारा 79 के तहत अपने नियामक अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।

हाईकोर्ट द्वारा याचिका स्वीकार करने पर टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका स्वीकार करना गलत था क्योंकि MPPTCL के पास विधिक रूप से सक्षम वैकल्पिक उपाय (Section 111 APTEL में अपील) उपलब्ध था। न्यायालय ने कहा:

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“जब न तो कोई संवैधानिक चुनौती हो, न प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन का मामला, और न ही किसी अधिनियम की वैधता पर प्रश्न हो, तो रिट याचिका नहीं मानी जानी चाहिए।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि CERC द्वारा आदेश के माध्यम से मुआवज़ा देने की अनुमति देना, धारा 79 के तहत एक वैध नियामक अधिकार है।

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