सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली ताज़ा याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया और टिप्पणी की कि “हर किसी को अपना नाम अख़बार में छपवाना है।”
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि वह केवल पहले से चुनी गई सीमित याचिकाओं पर ही विचार करेगी, जिनकी सुनवाई 20 मई को तय है।
जैसे ही एक नई याचिका पर सुनवाई शुरू हुई, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आपत्ति जताई कि अधिनियम के खिलाफ अंतहीन याचिकाएं दायर नहीं की जा सकतीं। उन्होंने कहा, “इस तरह अनगिनत याचिकाएं दायर होती रहीं तो प्रक्रिया का कोई अंत नहीं रहेगा।”

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उनकी याचिका 8 अप्रैल को दाखिल हुई थी और 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा बताए गए सभी दोष दूर कर दिए गए थे, लेकिन फिर भी सूचीबद्ध नहीं हुई। इस पर सीजेआई गवई ने टिप्पणी की, “हर किसी को अख़बार में अपना नाम चाहिए।” इसके बाद पीठ ने याचिका खारिज कर दी।
एक और समान याचिका को भी संक्षिप्त आदेश के साथ खारिज कर दिया गया — “खारिज।” जब याचिकाकर्ता ने लंबित मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी, तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमारे पास पहले से ही बहुत सारे हस्तक्षेपकर्ता हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने पहले 17 अप्रैल को स्पष्ट कर दिया था कि वह वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं में से केवल पांच प्रतिनिधि याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। इन याचिकाओं में प्रमुख कानूनी मुद्दे निम्नलिखित हैं:
वक़्फ़ संपत्तियों की डिनोटिफिकेशन (अवसूचना) – क्या सरकार अदालत द्वारा घोषित, उपयोग से स्थापित या दस्तावेज़ द्वारा घोषित वक़्फ़ संपत्तियों को डिनोटिफाई कर सकती है?
वक़्फ़ बोर्डों की संरचना – याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में केवल मुसलमान सदस्य (पूर्व पदेन सदस्यों को छोड़कर) होने चाहिए।
भूमि जांच प्रावधान – संशोधित अधिनियम का एक प्रावधान जिलाधिकारियों को यह जांचने की शक्ति देता है कि वक़्फ़ सूची में दर्ज संपत्तियाँ वास्तव में सरकारी भूमि हैं या नहीं।
17 अप्रैल को, केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि वह 5 मई तक कोई भी वक़्फ़ संपत्ति (यहां तक कि उपयोग से स्थापित वक़्फ़) डिनोटिफाई नहीं करेगी और न ही वक़्फ़ परिषद या बोर्डों में नियुक्तियाँ करेगी। यह रुख सरकार ने 15 मई को भी दोहराया और कोर्ट के उस प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने की बात कही गई थी।
इस बीच, केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने कानून की संवैधानिकता का बचाव करते हुए 1,300 से अधिक पन्नों का प्रारंभिक हलफनामा दाखिल किया है और संशोधन के क्रियान्वयन पर संपूर्ण रोक का विरोध किया है।
अब सुप्रीम कोर्ट 20 मई को इस मामले की सुनवाई अंतरिम निर्देशों के संदर्भ में प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित होकर फिर से शुरू करेगा।