सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना पूर्व पर्यावरण स्वीकृति शुरू हुए प्रोजेक्ट्स को नहीं मिलेगी ‘एक्स-पोस्ट फैक्टो’ मंजूरी

पर्यावरणीय अनुपालन को सख्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (16 मई 2025) को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह भविष्य में किसी भी खनन या विकास परियोजना को ‘एक्स-पोस्ट फैक्टो’ पर्यावरण स्वीकृति (Environmental Clearance – EC) न दे, यदि वह परियोजना पूर्व स्वीकृति के बिना शुरू की गई हो।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूयान की पीठ ने इस फैसले में वर्ष 2017 की अधिसूचना और 2021 के ऑफिस मेमोरेंडम (OM) को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले से पूर्व में इन अधिसूचनाओं के आधार पर दी गई स्वीकृतियों को प्रभावित नहीं किया जाएगा।

न्यायालय का स्पष्ट संदेश

न्यायमूर्ति ओका ने फैसले का महत्वपूर्ण अंश पढ़ते हुए कहा:

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“जिन लोगों ने पूर्व पर्यावरणीय स्वीकृति के बिना गंभीर गैरकानूनी कार्य किए, उनके पक्ष में कोई समानता नहीं है। ये लोग अशिक्षित नहीं थे — ये कंपनियां, रियल एस्टेट डेवलपर्स, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां, खनन उद्योग आदि थे, जिन्होंने जानबूझकर गैरकानूनी कार्य किए। हम स्पष्ट करते हैं कि अब केंद्र सरकार 2017 की अधिसूचना के किसी भी रूप में एक्स-पोस्ट फैक्टो EC की व्यवस्था नहीं कर सकती। हमने 2021 का OM भी रद्द कर दिया है।”

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पृष्ठभूमि

यह याचिकाएं पर्यावरण संरक्षण संगठन ‘वनशक्ति’ और अन्य ने दाखिल की थीं, जिसमें जुलाई 2021 और जनवरी 2022 को जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) की वैधता को चुनौती दी गई थी। इन सरकारी दस्तावेजों में उन परियोजनाओं को पूर्ववर्ती स्वीकृति देने की व्यवस्था थी, जो पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 के तहत अनिवार्य पूर्व EC के बिना शुरू की गई थीं।

वनशक्ति ने तर्क दिया कि EIA 2006 में “पूर्व स्वीकृति” शब्द 34 बार आता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह अनिवार्य शर्त है। अतः कोई भी नीति जो एक्स-पोस्ट फैक्टो स्वीकृति देती है, वह कानून के विपरीत है।

केंद्र सरकार का पक्ष

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने जुलाई 2024 में दायर एक हलफनामे में कहा कि 2017 की अधिसूचना ने केवल छह माह की एक विशेष खिड़की खोली थी, जो सितंबर 2017 में बंद हो गई। इसके बाद जुलाई 2021 का OM एक वैकल्पिक प्रक्रिया था, जो बाद में हुईं उल्लंघन की घटनाओं को संबोधित करने के लिए बनाया गया था।

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सरकार ने यह भी कहा कि यदि ऐसे प्रोजेक्ट्स को पूर्णतः समाप्त करने का आदेश दिया जाए तो उससे पर्यावरण को और नुकसान हो सकता है, जैसा कि नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर्स के विध्वंस में देखा गया।

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि यह OM “polluter pays” सिद्धांत के अनुसार एक विनियामक समाधान था और यह पूर्व EC की आवश्यकता को समाप्त नहीं करता।

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सुप्रीम कोर्ट की अंतिम टिप्पणी

कोर्ट ने सरकार की इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि जो संस्थाएं पूर्व स्वीकृति के बिना परियोजनाएं शुरू कर रही थीं, वे न तो अनभिज्ञ थीं और न ही अज्ञानता में थीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की एक्स-पोस्ट फैक्टो नीति न केवल अवैध है, बल्कि यह पर्यावरण कानूनों की मूल भावना के खिलाफ है।

इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्थापित कर दिया कि किसी भी परियोजना की शुरुआत से पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी अनिवार्य है और इसके बिना शुरू हुई परियोजनाओं को बाद में वैध नहीं ठहराया जा सकता।

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