मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी तब तक अमान्य नहीं होगी जब तक सक्षम न्यायालय ऐसा घोषित न कर दे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि मुस्लिम पुरुष द्वारा वैध रूप से दूसरी शादी करना भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (द्वि-विवाह) के तहत दंडनीय नहीं है, जब तक कि उस विवाह को शरिया के अनुसार ‘बातिल’ (अवैध) घोषित न किया जाए। न्यायालय ने अभियुक्तों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामले में अग्रिम कार्यवाही पर रोक लगाई।

पृष्ठभूमि

यह आवेदन फुरकान और दो अन्य द्वारा भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376, 495, 120-बी, 504 और 506 के अंतर्गत दर्ज प्राथमिकी संख्या 5/2020 एवं आरोप पत्र संख्या 318/2020 (दिनांक 08.11.2020) को निरस्त करने हेतु दाखिल किया गया था। यह मामला अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, न्यायालय संख्या-6, मुरादाबाद में विचाराधीन है।

आवेदकों की दलीलें

आवेदकों के अधिवक्ता ने दलील दी:

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  • मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 के अनुसार मुस्लिमों के बीच विवाह का मामला शरीयत के अनुसार तय होता है, जिसमें बहुविवाह की अनुमति है।
  • आईपीसी की धारा 494 तभी लागू होती है जब दूसरी शादी अवैध हो। यदि शादी शरीयत के अनुसार की गई है और वैध है, तो यह धारा लागू नहीं होगी।
  • स्मृति सरला मुद्गल बनाम भारत संघ, लिली थॉमस बनाम भारत संघ और डॉ. सूरजमणि स्टेला कुजूर बनाम दुर्गा चरण हांसदाह जैसे मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक दूसरी शादी को अवैध घोषित न किया जाए, धारा 494 के तहत अपराध नहीं बनता।
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राज्य की दलीलें

राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता ने दलील दी:

  • अगर पहली शादी किसी विशेष वैधानिक कानून (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) के अंतर्गत हुई है, और व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनकर दूसरी शादी करता है, तो वह शादी अवैध मानी जाएगी और धारा 494 आईपीसी लागू होगी।
  • जाफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य में परिभाषित अपवादों का हवाला देते हुए कहा गया कि मुस्लिम पुरुष को भी अनियंत्रित रूप से दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं है।

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा:

  • आईपीसी की धारा 494 के लिए यह आवश्यक है कि दूसरी शादी जीवित जीवनसाथी की उपस्थिति में की जाए और वह बातिल (अवैध) हो।
  • मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी वैध मानी जाती है जब तक कि उसे किसी सक्षम न्यायालय (जैसे फैमिली कोर्ट) द्वारा ‘बातिल’ घोषित न किया जाए।
  • फैमिली कोर्ट अधिनियम, 1984 के तहत ऐसे विवाहों की वैधता का निर्णय करने का अधिकार फैमिली कोर्ट को प्राप्त है।
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न्यायालय ने कहा:

“यदि मुस्लिम पुरुष ने पहली शादी शरीयत के अनुसार की हो और दूसरी शादी भी मुस्लिम महिला से शरीयत के अनुसार की हो, तो वह शादी अवैध नहीं होगी और धारा 494 आईपीसी के तत्व लागू नहीं होंगे, जब तक कि फैमिली कोर्ट उसे बातिल घोषित न कर दे।”

न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत

  1. यदि मुस्लिम पुरुष ने पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत की है, तो दूसरी शादी वैध मानी जाएगी, जब तक कि उसे बातिल घोषित न किया जाए।
  2. यदि पहली शादी किसी विशेष विवाह कानून के तहत हुई हो (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) और बाद में व्यक्ति ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनकर दूसरी शादी की हो, तो दूसरी शादी अवैध मानी जाएगी और धारा 494 आईपीसी लागू होगी।
  3. मुस्लिम विवाह की वैधता का निर्धारण फैमिली कोर्ट कर सकता है।
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निर्णय

न्यायालय ने कहा कि आवेदक और शिकायतकर्ता दोनों मुस्लिम हैं और शिकायतकर्ता के बयान के अनुसार शादी हुई है। अतः यह शादी वैध है और आईपीसी की धारा 376, 495, और 120-बी के अंतर्गत कोई अपराध नहीं बनता।

न्यायालय ने आदेश दिया:

“अगली सुनवाई की तिथि तक आवेदकों के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी।”

मामले को 26 मई 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया है।

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