सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे नागरिकों के लिए सुरक्षित और उपयुक्त फुटपाथ सुनिश्चित करने हेतु व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करें। कोर्ट ने कहा कि सुरक्षित पैदल चलने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि उचित फुटपाथों की अनुपस्थिति में नागरिकों को सड़कों पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनके जीवन को गंभीर जोखिम होता है। कोर्ट ने कहा, “नागरिकों के लिए उचित फुटपाथ होना आवश्यक है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी सुलभ हों और अतिक्रमण को हटाना अनिवार्य है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पैदल यात्रियों का फुटपाथ का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से गहराई से जुड़ा है। “अवरोध रहित फुटपाथों का अधिकार निश्चय ही एक आवश्यक विशेषता है,” कोर्ट ने स्पष्ट किया।

महत्वपूर्ण आदेश में कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो महीने के भीतर पैदल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए मौजूदा दिशा-निर्देश दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि फुटपाथों का निर्माण और रखरखाव इस प्रकार किया जाए कि वे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी पूरी तरह से सुलभ हों।
इसके अतिरिक्त, पीठ ने केंद्र सरकार को छह महीने के भीतर राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया और स्पष्ट किया कि इसके बाद समय बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह आदेश एक जनहित याचिका पर आया जिसमें देशभर के शहरों में पैदल यात्रियों के लिए बुनियादी ढांचे, विशेषकर फुटपाथों की कमी और अतिक्रमण की गंभीर स्थिति को उजागर किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को इसे सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में लेना चाहिए।