सुप्रीम कोर्ट ने सेना की लीगल ब्रांच में महिलाओं की कम भागीदारी पर सवाल उठाए: ‘जब महिलाएं राफेल उड़ा सकती हैं, तो JAG में क्यों नहीं?’

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच में महिलाओं की सीमित भागीदारी पर कड़ा सवाल उठाया है, जबकि इन पदों को “जेंडर न्यूट्रल” (लिंग निरपेक्ष) बताया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब महिलाएं भारतीय वायुसेना में राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती हैं, तो सेना की लीगल ब्रांच में उनके अधिक समावेश में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने 8 मई को सेना की अधिकारी अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। दोनों अधिकारियों ने पुरुष उम्मीदवारों से बेहतर मेरिट रैंक प्राप्त की थी, लेकिन महिलाओं के लिए सीमित सीटें होने के कारण उन्हें JAG पद के लिए चयनित नहीं किया गया। कुल छह पदों में से केवल तीन पद महिलाओं के लिए निर्धारित किए गए थे।

पीठ ने कहा, “प्रथम दृष्टया, हम याचिकाकर्ता अर्शनूर कौर द्वारा प्रस्तुत मामले से संतुष्ट हैं।” कोर्ट ने केंद्र और सेना को निर्देश दिया कि उन्हें अगली उपलब्ध ट्रेनिंग कोर्स में JAG नियुक्ति के लिए शामिल करने पर विचार किया जाए।

पीठ ने एक महिला पायलट के राफेल विमान उड़ाने की खबर का हवाला देते हुए कहा, “जब भारतीय वायुसेना में कोई महिला पायलट राफेल विमान उड़ाकर युद्धबंदी बनने के जोखिम का सामना कर सकती है, तो सेना में महिलाओं को JAG में अधिक संख्या में क्यों नहीं शामिल किया जा सकता?” न्यायमूर्ति दत्ता ने केंद्र और सेना की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा।

कोर्ट को यह भी बताया गया कि सह-याचिकाकर्ता आस्था त्यागी अब भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं।

जजों ने तथाकथित “जेंडर न्यूट्रल” ब्रांच में लिंग आधारित कोटा प्रणाली जारी रखने के औचित्य पर सवाल उठाए। न्यायमूर्ति मनमोहन ने स्पष्ट रूप से पूछा, “अगर मेरिट के आधार पर JAG के लिए 10 महिलाएं चयनित होती हैं, तो क्या सभी को नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए?” उन्होंने कहा कि जेंडर न्यूट्रैलिटी का अर्थ मेरिट आधारित चयन है, न कि कोई निर्धारित अनुपात।

सेना की नीति का बचाव करते हुए भाटी ने कहा कि महिलाओं की भर्ती एक “प्रगतिशील प्रक्रिया” है जो संचालन की तैयारियों से जुड़ी है। उन्होंने बताया कि 2024 से पुरुष-महिला भर्ती अनुपात को 70:30 से घटाकर 50:50 किया गया है, जो कि मानव संसाधन मूल्यांकन और संचालन जरूरतों के आधार पर किया गया निर्णय है और यह कार्यपालिका का विशेष क्षेत्राधिकार है।

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भाटी ने कहा, “इसे भेदभावपूर्ण कहना कार्यपालिका के विशेष क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि JAG अधिकारी केवल कानूनी सलाह तक सीमित नहीं रहते बल्कि संचालन की तैयारी और सैन्य अनुशासन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग SSB (सेवा चयन बोर्ड) परीक्षा आयोजित करने को भी भाटी ने उचित ठहराया, क्योंकि कुछ परीक्षणों में निकट शारीरिक संपर्क शामिल होता है।

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कोर्ट के इस सवाल पर कि महिला JAG अधिकारियों को युद्ध क्षेत्रों में क्यों नहीं तैनात किया जाता, भाटी ने बताया कि यह सरकार की एक सोच-समझी नीति है ताकि महिला अधिकारियों को अग्रिम मोर्चे के जोखिम और संभावित दुश्मन संपर्क से बचाया जा सके।

कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है, जो भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका में संभावित बदलाव के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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