सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह निर्णय दिया है कि विवेचना अधिकारियों (IOs) द्वारा केवल धारा 161 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत दर्ज गवाहों के बयानों के आधार पर ट्रायल के दौरान दिए गए बयान न तो स्वीकार्य हैं और न ही उनका कोई प्रमाणिक महत्व है, जब तक कि वही गवाह स्वयं न्यायालय में उन तथ्यों की पुष्टि न करें। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने छह आरोपियों की दोषसिद्धि को रद्द करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी किए जाने के आदेश को बहाल किया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 28 अप्रैल 2011 को घटित एक हत्या से संबंधित था, जिसमें आरोप था कि A1 ने पारिवारिक विवाद के चलते भाड़े के हत्यारों से हत्या करवाई। मृतक, A1 के भाई (PW4) के पक्ष में था, जिससे नाराज होकर A1 ने साजिश रची। हत्या का कथित रूप से मृतक के नाबालिग पुत्र (PW8) ने प्रत्यक्षदर्शी के रूप में देखा और उसी ने प्रथम सूचना बयान दिया।
ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया था कि कुल 87 गवाहों में से 71, जिनमें सभी मुख्य प्रत्यक्षदर्शी और पंच गवाह शामिल थे, मुकर गए थे। हाईकोर्ट ने हालांकि IOs के माध्यम से प्रस्तुत धारा 161 CrPC के बयानों पर भरोसा कर बरी किए जाने के आदेश को पलटते हुए दोषसिद्धि दे दी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने धारा 161 CrPC के तहत दर्ज गवाहों के बयानों को, जो कि IOs द्वारा अदालत में दोहराए गए थे, को सब्सटैंटिव एविडेंस (स्वतंत्र साक्ष्य) के रूप में स्वीकार कर गंभीर त्रुटि की है। न्यायालय ने कहा:
“आईओ द्वारा कथित तौर पर गवाहों के धारा 161 के अंतर्गत दिए गए बयानों के आधार पर जो साजिश, उद्देश्य और तैयारी का विवरण प्रस्तुत किया गया है, वह अभियोजन पक्ष की कहानी मात्र है; ऐसे बयान, जो जांच के दौरान लिए गए हों, धारा 162 सीआरपीसी के तहत पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं।”
न्यायालय ने दोहराया कि ऐसे बयान केवल गवाहों के जिरह में विरोधाभास दर्शाने के लिए प्रयुक्त किए जा सकते हैं, न कि दोषसिद्धि के आधार के रूप में, जब तक कि गवाह स्वयं ट्रायल के दौरान उन तथ्यों को न दोहराएं।
इकबालिया बयान और बरामदगी
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अभियुक्तों के कथित इकबालिया बयानों के आधार पर नकदी, हथियार और वस्त्र जैसी वस्तुओं की बरामदगी की गई थी। परंतु, अधिकांश बरामदगियाँ निष्प्रभावी थीं क्योंकि वे या तो कोई नई बात सामने नहीं लाईं या ऐसे अभियुक्तों द्वारा की गई थीं जिनका हत्या से सीधा संबंध नहीं था।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल रक्तरंजित वस्तुओं की बरामदगी, जिनका रक्त मृतक से मेल खाता है, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है जब तक उनका प्रत्यक्ष संबंध अभियुक्तों से स्थापित न हो।
निष्कर्ष और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के विरुद्ध वैधानिक और स्वीकार्य साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा। न्यायालय ने कहा:
“हम न तो उद्देश्य, न साजिश, न तैयारी और न ही अपराध को ट्रायल के दौरान न्यायालय के समक्ष गवाहों द्वारा प्रमाणित रूप से स्थापित पाते हैं।”
इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दी गई दोषसिद्धि को रद्द करते हुए अपीलें स्वीकार कीं, सभी आरोपियों को बरी किया और यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
संदर्भ:
रेणुका प्रसाद बनाम राज्य, क्रिमिनल अपील संख्या 3189–3190/2023