कर्नाटक हाईकोर्ट ने सड़कों पर खतरनाक स्टंट ‘व्हीलिंग’ को रोकने के लिए सख्त कानूनी प्रावधानों की अनुपस्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार से इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए कड़े कानून बनाने का अनुरोध किया है।
व्हीलिंग में दोपहिया वाहन चालक चलते वाहन का अगला पहिया उठाते हैं, जिससे न केवल चालक और पीछे बैठे व्यक्ति की जान खतरे में पड़ती है, बल्कि आम जनता की भी सुरक्षा प्रभावित होती है। न्यायमूर्ति वी. श्रीशनंदा ने व्हीलिंग के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत वर्तमान प्रावधान ऐसे खतरनाक कृत्यों को रोकने में पर्याप्त नहीं हैं।
न्यायमूर्ति श्रीशनंदा ने कहा, “फिलहाल व्हीलिंग को केवल लापरवाही या तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने जैसी जमानती धाराओं के तहत ही अपराध माना जाता है, जो ऐसे खतरनाक कृत्यों पर प्रभावी कार्रवाई करने में असफल हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि मोटर वाहन अधिनियम बनाते समय विधायकों ने शायद इस तरह के खतरनाक स्टंट की कल्पना नहीं की थी। “ऐसे मामलों में तेजी से हो रही वृद्धि को देखते हुए राज्य और प्रवर्तन एजेंसियों का यह दायित्व बनता है कि वे इस खतरनाक प्रवृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक कानूनी प्रावधान और कड़े कदम उठाएं।”
कोर्ट ने चेतावनी दी कि व्हीलिंग न केवल चालकों और पीछे बैठे लोगों के लिए बल्कि आम जनता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए भी खतरा है। न्यायमूर्ति ने कहा, “युवक व्हीलिंग को बहादुरी का प्रतीक मान लेते हैं, जबकि वे इसके जानलेवा परिणामों से अनजान रहते हैं।”
ये टिप्पणियां अक्टूबर 2024 में दो सवारियों के साथ व्हीलिंग करने के आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते समय की गईं। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, स्टंट के दौरान पुलिस द्वारा रोके जाने पर वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। आरोपी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों पर हमला किया, उन्हें घायल किया और पुलिस का मोबाइल फोन नहर में फेंक कर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।
आरोपी ने दलील दी कि उसे पुलिस से व्यक्तिगत विवाद के चलते झूठा फंसाया गया है। हालांकि, अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी को दोबारा अपराध करने वाला और टकराव के दौरान आक्रामक व्यवहार करने वाला बताया गया, जिससे कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ।
न्यायमूर्ति श्रीशनंदा ने अपने फैसले में कहा, “केवल चार्जशीट दाखिल होना जमानत का आधार नहीं बन सकता। यदि परिस्थितियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होता है तो याचिकाकर्ता उपयुक्त अदालत में पुनः जमानत का अनुरोध कर सकता है।”
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सादिक एन. गुडवाला ने पक्ष रखा, जबकि राज्य की ओर से सरकारी वकील गिरीजा एस. हीरमठ ने पक्ष रखा।