सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि “हर भारतीय नागरिक जो किसी अपराध की शिकायत दर्ज कराने पुलिस थाने जाता है, उसके साथ मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार किया जाना उसका मौलिक अधिकार है।” न्यायालय ने एक पुलिस अधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने और शिकायतकर्ता की माता के प्रति अपमानजनक भाषा के प्रयोग को मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने ‘पावुल येसु धासन बनाम रजिस्ट्रार, राज्य मानवाधिकार आयोग तमिलनाडु व अन्य’ [सिविल अपील संख्या 6358/2025, विशेष अनुमति याचिका संख्या 20028/2022] में यह निर्णय सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह मामला एक शिकायत पर आधारित था जिसे तीसरे प्रतिवादी ने तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष दायर किया था। आयोग ने पाया कि श्रीविल्लिपुथुर टाउन पुलिस स्टेशन (क्राइम), विरुधुनगर जिले में तैनात इंस्पेक्टर पावुल येसु धासन ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार किया और शिकायतकर्ता की मां के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया। आयोग ने गृह, निषेध एवं आबकारी विभाग के अपर मुख्य सचिव को ₹2,00,000 की क्षतिपूर्ति राशि शिकायतकर्ता को देने का निर्देश दिया, जिसे संबंधित अधिकारी से वसूलने की स्वतंत्रता भी दी गई।
याचिकाकर्ता की दलील
अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यदि यह मान भी लिया जाए कि अधिकारी ने एफआईआर दर्ज नहीं की, तब भी यह मानवाधिकारों के संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 2(घ) के अंतर्गत मानवाधिकार उल्लंघन नहीं माना जा सकता। उन्होंने “मानवाधिकार” की व्याख्या को सीमित दायरे में करने की अपील की, जो केवल अंतरराष्ट्रीय समझौतों या संविधान द्वारा गारंटीकृत न्यायालयीय अधिकारों तक सीमित हो।
न्यायालय का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि धारा 2(घ) के अनुसार “मानवाधिकार” जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से जुड़े वे अधिकार हैं जो संविधान या अंतरराष्ट्रीय समझौतों में समाहित हैं और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।
न्यायालय ने तथ्यों का संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की:
“इस मामले के तथ्य, न्यूनतम रूप से कहें तो, चौंकाने वाले हैं।”
न्यायालय ने बताया कि शिकायतकर्ता अपने माता-पिता के साथ थाने गया था लेकिन उपनिरीक्षक ने शिकायत यह कहकर नहीं ली कि इसमें कई स्थान सम्मिलित हैं और इसे निरीक्षक की अनुमति के बाद ही स्वीकार किया जाएगा। बाद में, जब शिकायतकर्ता की मां ने निरीक्षक (अपीलकर्ता) से संपर्क किया तो उन्होंने कॉल काट दी और रात 8:30 बजे मुलाकात पर अत्यंत आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया।
न्यायालय ने कहा:
“भारत का प्रत्येक नागरिक जो किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन जाता है, उसके साथ मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। यह उसका संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। अपराध की शिकायत करने वाला नागरिक अपराधी जैसा व्यवहार सहन नहीं कर सकता।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता का व्यवहार मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन था और राज्य आयोग तथा मद्रास हाईकोर्ट के निर्णयों में कोई हस्तक्षेप करने का कारण नहीं है।
“विवादित निर्णय और आदेश में किसी प्रकार का हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।” — यह कहकर न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।