उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षकों की भर्ती में ईडब्ल्यूएस आरक्षण की मांग वाली याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट से खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण लागू करने की मांग वाली अपीलों को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह भर्ती प्रक्रिया ईडब्ल्यूएस आरक्षण नीति लागू होने से पहले ही पूरी हो चुकी थी।

मुख्य न्यायाधीश अश्विनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने एकल पीठ के पूर्व आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि नियुक्तियां नई नीति से अप्रभावित हैं क्योंकि यह भर्ती पहले ही पूरी हो चुकी थी। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि विज्ञापित पदों पर सभी नियुक्तियां पहले ही पूरी हो चुकी हैं।

READ ALSO  PMLA | जहाँ वैधानिक विकल्प मौजूद हैं, वहां अनंतिम कुर्की आदेश (PAO) के खिलाफ रिट याचिका विचारणीय नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

अदालत ने अपने आदेश में कहा, “यह निर्विवाद है कि भर्ती प्रक्रिया न केवल प्रारंभ हो चुकी थी बल्कि पूरी भी हो गई थी। बोर्ड के सचिव ने व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया है कि 69,000 सहायक शिक्षकों के पदों पर सभी नियुक्तियां पूरी कर दी गई हैं। वर्तमान याचिका में चयनित किसी भी अभ्यर्थी को पक्षकार नहीं बनाया गया है और पहले से की गई किसी भी नियुक्ति को चुनौती नहीं दी गई है।”

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आवेदन पत्र में ईडब्ल्यूएस स्थिति का कोई विवरण नहीं मांगा गया था, जिससे ऐसे आरक्षण को पिछली तिथि से लागू करना असंभव है। “रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह पता चले कि परीक्षा फार्म में अभ्यर्थियों से उनकी ईडब्ल्यूएस स्थिति का उल्लेख करने को कहा गया था। ऐसी स्थिति में यह निर्धारित करना मुश्किल होगा कि वास्तव में ईडब्ल्यूएस श्रेणी में कौन अभ्यर्थी आते हैं।”

अदालत ने आगे कहा, “इस संबंध में जानकारी के अभाव में ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों की कोई मेरिट सूची तैयार करना और यदि ऐसी जानकारी उपलब्ध भी होती, तो नियुक्त हो चुके अनारक्षित श्रेणी के 10% अभ्यर्थियों को हटाकर आरक्षण लागू करना व्यावहारिक और कानूनी रूप से बेहद कठिन कार्य होता।”

READ ALSO  भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 24 की प्रयोज्यता उस तारीख पर निर्भर करती है जिस दिन अवार्ड दिया गया है, न कि उस तारीख पर जिस पर अधिकारियों द्वारा कब्ज़ा लिया गया था: इलाहाबाद हाईकोर्ट

पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि चयनित अभ्यर्थी पिछले कई वर्षों से कार्यरत हैं और उनकी नियुक्तियों को चुनौती नहीं दी गई है। “ऐसे में न्यायालय का विवेकाधिकार प्रयोग कर इस भर्ती प्रक्रिया में 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इस स्तर पर ऐसा करना व्यावहारिक रूप से असंभव है।”

Ad 20- WhatsApp Banner
READ ALSO  महिला होने से कोई अलग व्यवहार नहीं मिलेगा- कोर्ट ने नकली नोट के मामले में महिला और उसके साथी को जेल की सजा सुनाई

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles