सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हाल ही में संशोधित वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल को संबंधित क्षेत्राधिकार वाले हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने की स्वतंत्रता देते हुए स्पष्ट किया कि वे ऑनलाइन भी याचिका दायर कर सकते हैं।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिकाएं दाखिल करने की यह प्रवृत्ति स्वीकार नहीं की जा सकती। इससे हाई कोर्ट की गरिमा कम होती है। जब तक दो या अधिक राज्य शामिल न हों, हम अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाएं स्वीकार नहीं करेंगे।”
याचिकाकर्ता के वकील, अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा ने दलील दी कि अग्रवाल को राज्य हाई कोर्ट जाने पर जान का खतरा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और हिंसा में शामिल लोगों की मिलीभगत से इस तरह के मामलों में शामिल वकीलों को झूठे आरोपों में फंसाया गया है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सुरक्षित रूप से वर्चुअल माध्यम से याचिका दाखिल कर सकते हैं। पीठ ने निर्देश दिया, “अगर आपको अपनी जान का डर है तो ऑनलाइन याचिका दायर करें। हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल इस प्रक्रिया में सहायता करेंगे।”
अग्रवाल ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने “पक्षपातपूर्ण रवैया” अपनाते हुए 8 अप्रैल से 12 अप्रैल 2025 के बीच मुर्शिदाबाद में हुई “भयानक घटनाओं” के दोषियों को बचाने का प्रयास किया। याचिका में हिंदू समुदाय के खिलाफ विशेष रूप से हमलों, आगजनी और सांप्रदायिक हिंसा के गंभीर मामलों का हवाला दिया गया है, जो वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के पारित होने के बाद हुए थे।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में SIT गठित की जाए या फिर वैकल्पिक रूप से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से निष्पक्ष जांच कराई जाए ताकि पश्चिम बंगाल में कानून के शासन और जनता का भरोसा बहाल हो सके।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि बिना पर्याप्त आधार के हाई कोर्ट को दरकिनार कर सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाएगा।