केरल हाईकोर्ट ने जस्टिस मोहम्मद नियास सी.पी. की अध्यक्षता में बीएसएनएल उपभोक्ता द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें स्थायी लोक अदालत द्वारा समीक्षा याचिका को अस्वीकार किए जाने को चुनौती दी गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22D के तहत स्थायी लोक अदालतों को अपने निर्णयों की गुण-दोष के आधार पर समीक्षा करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता प्रकाश शंकर, बीएसएनएल के एक पोस्टपेड मोबाइल उपभोक्ता, ने 30 नवंबर 2015 को अंतरराष्ट्रीय रोमिंग चालू कर दुबई की यात्रा की थी। इसके बाद उन्हें कुल ₹1,27,462 की मोबाइल बिलिंग प्राप्त हुई। उन्होंने इस बिल को O.P. No. 40/2016 के तहत कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22C(1) एवं धारा 22A(b)(ii) के अंतर्गत स्थायी लोक अदालत के समक्ष चुनौती दी।
बीएसएनएल ने उत्तर में कहा कि याचिकाकर्ता ‘डेटा प्लान 501’ पर था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय रोमिंग के लिए 5GB डेटा की सीमा थी। निर्धारित क्रेडिट सीमा से अधिक डेटा उपयोग होने पर स्वतः ही प्री-बैरिंग संदेश जारी हुआ और सेवाएं निलंबित कर दी गईं। बिलिंग रिकॉर्ड में चार दिनों तक अत्यधिक डेटा उपयोग दिखाया गया था। बीएसएनएल ने तर्क दिया कि स्मार्टफोन की पृष्ठभूमि में चलने वाली एप्लिकेशनों के कारण भारी मात्रा में डेटा उपयोग संभव है और उनके उपयोग लॉग इस शुल्क की पुष्टि करते हैं।
स्थायी लोक अदालत ने यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता बिलिंग में कोई त्रुटि प्रमाणित नहीं कर सके और बीएसएनएल द्वारा प्रस्तुत विस्तृत कॉल डेटा व उपयोग विवरण उसके दावे का समर्थन करता है, याचिका खारिज कर दी।
समीक्षा याचिका एवं हाईकोर्ट की कार्यवाही:
निर्णय के बाद, याचिकाकर्ता ने धारा 22D के तहत समीक्षा याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि बीएसएनएल ने महत्वपूर्ण दस्तावेज छुपाए और अदालत को धोखे में रखा। स्थायी लोक अदालत ने बिना प्रतिवादी को नोटिस दिए याचिका खारिज कर दी और कहा कि उसे प्रमाणों का पुनर्मूल्यांकन करने अथवा गुण-दोष के आधार पर मामला पुनः परखने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस मोहम्मद नियास सी.पी. ने Kapra Mazdoor Ekta Union v. Birla Cotton Spinning & Weaving Mills Ltd. [(2005) 13 SCC 777] तथा Grindlays Bank Ltd. v. Central Government Industrial Tribunal [AIR 1981 SC 606] जैसे प्रासंगिक निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“गुण-दोष के आधार पर समीक्षा, जिसमें निर्णय की सत्यता की पुनः परीक्षा शामिल होती है, केवल तब की जा सकती है जब कानून विशेष रूप से इसकी अनुमति दे।”
अदालत ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि धारा 22D केवल प्रक्रियात्मक मार्गदर्शन प्रदान करती है और इससे लोक अदालत को गुण-दोष आधारित समीक्षा का कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता। याचिकाकर्ता द्वारा पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक निर्णय पर की गई निर्भरता को अस्वीकार कर दिया गया और कहा गया कि वह निर्णय अच्छा कानून नहीं है।
निर्णय:
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई समीक्षा एक गुण-दोष आधारित समीक्षा थी, जो विधि के अंतर्गत अनुमेय नहीं है। अतः जस्टिस मोहम्मद नियास सी.पी. ने रिट याचिका को खारिज करते हुए स्थायी लोक अदालत के निर्णय को बरकरार रखा।
मामले का शीर्षक: Prakash Sankar बनाम बीएसएनएल एवं अन्य
रिट याचिका संख्या: WP(C) No. 27890 of 2018