दिल्ली हाई कोर्ट ने पुराने बारापुल्ला पुल के पास स्थित मद्रासी कैंप झुग्गी बस्ती को आगामी मानसून से पहले बारापुल्ला नाले की सफाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हटाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को पारित आदेश में कहा कि यह कार्रवाई 1 जून 2025 से शुरू की जाएगी।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस मनमीत पी.एस. अरोड़ा की पीठ ने स्पष्ट किया कि बारापुल्ला नाले की समय पर सफाई अत्यंत आवश्यक है ताकि आसपास के इलाकों में भारी जलभराव को रोका जा सके। कोर्ट ने कहा, “मद्रासी कैंप को 1 जून 2025 से चरणबद्ध और व्यवस्थित तरीके से हटाया जाए।”
इससे पहले 10 सितंबर 2024 को हाई कोर्ट ने निवासियों की याचिका पर अंतरिम राहत देते हुए इस कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। हालांकि, वर्तमान आदेश दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को यमुना नदी किनारे अवैध निर्माण हटाने के पूर्व में दिए गए निर्देशों के अनुरूप है।
कोर्ट ने झुग्गीवासियों की याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि निवासियों का भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है क्योंकि यह सार्वजनिक संपत्ति है। हालांकि, उन्हें दिल्ली स्लम एवं झुग्गी झोपड़ी पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति, 2015 के तहत पुनर्वास का अधिकार है। कोर्ट ने कहा, “बारापुल्ला नाले को अवरुद्ध होने से बचाने के लिए मद्रासी कैंप के निवासियों का पुनर्वास भी आवश्यक है।”
कोर्ट ने पुनर्वास प्रक्रिया को सुचारू और मानवीय बनाने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए हैं। डीडीए, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को 10 मई से 12 मई के बीच दो पुनर्वास शिविर आयोजित करने का निर्देश दिया गया है। इन शिविरों में निवासियों को नरेला में फ्लैटों के कब्जा पत्र दिए जाएंगे और पुनर्वास में सहायता के लिए ₹1.12 लाख का ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
साथ ही, कोर्ट ने डीडीए और डीयूएसआईबी को 20 मई तक नरेला फ्लैटों में सभी आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करने और पात्र निवासियों को 20 मई से 31 मई के बीच मद्रासी कैंप खाली करने का निर्देश दिया है।
बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसके लिए कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रभावित बच्चों को नरेला के नजदीकी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले दाखिला दिलाया जाए।
करीब 40 वर्षों से इस इलाके में रह रहे निवासियों ने कोर्ट में याचिका दायर कर पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित होने तक बेदखली टालने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपने अधिकारों का हवाला 2015 की नीति के तहत दिया था।