बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय विद्या भवन के मुम्बादेवी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, गिरगांव को एक सहायक प्रोफेसर को लगभग सात वर्षों तक प्रोबेशन पर रखने के लिए कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों और कॉलेज के अपने नियुक्ति नियमों का घोर उल्लंघन बताया।
सहायक प्रोफेसर रेशु सिंह ने 20 अप्रैल 2018 को कॉलेज ज्वाइन किया था। नियमानुसार, उन्हें दो साल की प्रोबेशन अवधि पूरी करने के बाद अप्रैल 2020 में स्थायी कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन 2021 से 2023 के बीच कई बार लिखित अनुरोध और अनुस्मारक देने के बावजूद कॉलेज ने उनकी नियुक्ति की पुष्टि नहीं की।
6 मई को न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन भोबे की खंडपीठ ने कॉलेज को आदेश दिया कि सिंह का नियुक्ति पुष्टि पत्र 20 जून 2020 से प्रभावी तिथि के साथ जारी किया जाए। कोर्ट ने कॉलेज को निर्देश दिया कि उन्हें पांच वेतन वृद्धि और सभी योग्यतानुसार पदोन्नतियां प्रदान की जाएं।

कोर्ट ने कॉलेज के व्यवहार को “न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरने वाला” और “शोषण से कम नहीं” बताया। अदालत ने कहा कि यह आचरण महात्मा गांधी के आदर्शों के बिल्कुल विपरीत है, जिनके नाम और विचारधारा से यह संस्था जुड़ी हुई है।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “शिक्षकों के साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं किया जा सकता। यह संस्था महात्मा गांधी के आशीर्वाद से स्थापित हुई थी। यदि इसे उनके आदर्शों का पालन करना है तो कर्मचारियों के साथ सम्मान और निष्पक्षता से व्यवहार करना होगा।”
कॉलेज प्रबंधन ने इस देरी के पीछे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (CSU) की मंजूरी लंबित होने का हवाला दिया था, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार पहले ही कॉलेज को स्वतंत्र रूप से नियुक्ति की पुष्टि करने का अधिकार दे चुकी है।
सिंह के वकील ने तर्क दिया कि यूजीसी नियमों के तहत प्रोबेशन अवधि दो वर्षों से अधिक नहीं हो सकती। सिंह को 6 वर्ष और 10 महीने तक अनिश्चितता में रखा गया, जो स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है।