पटना हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक न्यायालय द्वारा पत्नी और नाबालिग पुत्री को भरण-पोषण देने के आदेश को सही ठहराया है और पति द्वारा लगाए गए व्यभिचार और अवैध संतान के आरोपों को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार की एकल पीठ ने अवध किशोर साह द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी पर अनैतिक आचरण के निराधार आरोप मात्र से भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वैध विवाह के दौरान जन्मी संतान को वैध मानने का कानूनी अनुमान लागू होता है।
पृष्ठभूमि
यह मामला धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सोनी देवी व उनकी पुत्री गुड़िया कुमारी द्वारा अवध किशोर साह के विरुद्ध दायर भरण-पोषण याचिका से जुड़ा है। भागलपुर के पारिवारिक न्यायालय ने 14 जनवरी 2020 को आदेश पारित करते हुए पति को निर्देश दिया था कि वह पत्नी को ₹3,000 प्रतिमाह और पुत्री को ₹2,000 प्रतिमाह जुलाई 2012 से अदा करे।
सोनी देवी ने आरोप लगाया कि 18 मार्च 2010 को विवाह के पश्चात् उन्हें दहेज की मांग को लेकर प्रताड़ित किया गया और पति के किसी अन्य महिला से अवैध संबंध भी थे। इसके चलते उन्हें ससुराल छोड़कर मायके में रहना पड़ा, जहां उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं था।
वहीं, पति ने यह दावा करते हुए याचिका का विरोध किया कि विवाह दबाव में हुआ था, पुत्री उसकी जैविक संतान नहीं है और पत्नी के अपने बहनोई से अवैध संबंध हैं। साथ ही उसने एक तलाक की डिक्री भी प्रस्तुत की जो 1 मार्च 2025 को मुंगेर पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित की गई थी।
न्यायालय का विश्लेषण और मुख्य टिप्पणियां
न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार ने पत्नी के ‘व्यभिचार में रहने’ के आरोप को खारिज करते हुए कहा:
“’व्यभिचार में रहना’ का तात्पर्य निरंतर अनैतिक जीवन पद्धति से है, न कि किसी एक या दो नैतिक चूकों से। एक या दो नैतिक चूकें व्यभिचार हो सकती हैं, परंतु यह दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि महिला ‘व्यभिचार में रह रही है’। कुछ नैतिक चूकें और फिर सामान्य जीवन में लौट आना ‘व्यभिचार में रहना’ नहीं कहलाता। यदि यह चूक निरंतर हो और उसके बाद भी व्यभिचारपूर्ण जीवन जारी रहे, तभी यह ‘व्यभिचार में रहना’ माना जा सकता है।”
अदालत ने यह भी कहा कि पति द्वारा लगाए गए आरोप सामान्य, अस्पष्ट और तिथियों, स्थानों अथवा ठोस प्रमाणों से रहित हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट किया:
“यहां तक कि विवाह के दौरान पति का व्यवहार भी यह नहीं दर्शाता कि वह अपने आरोपों को लेकर गंभीर था… बल्कि उसकी अपनी याचिका में यह कहा गया है कि वह पत्नी को साथ रखने के लिए हमेशा तैयार था। यदि पति को विश्वास होता कि पत्नी व्यभिचार में लिप्त है, तो ऐसा प्रस्ताव संभव नहीं।”
इसलिए अदालत ने यह निर्णय दिया कि व्यभिचार का आरोप प्रमाणहीन है और इसके आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
पुत्री की पितृत्व और भरण-पोषण पर न्यायालय की राय
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उनकी पुत्री गुड़िया कुमारी 8 अगस्त 2010 को जन्मी थी, जो विवाह के केवल चार माह बाद है, अतः वह उनकी संतान नहीं है। इस पर न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 का हवाला देते हुए कहा:
“यह एक वैधानिक अनुमान है कि ओ.पी. संख्या 3 / गुड़िया कुमारी, याचिकाकर्ता की वैध पुत्री है… इस अनुमान को केवल यह साबित करके ही खंडित किया जा सकता था कि पति का पत्नी से उस समय कोई संपर्क नहीं था… परंतु याचिकाकर्ता द्वारा ऐसी कोई दलील या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।”
न्यायालय ने यह भी दोहराया कि धारा 125 की कार्यवाही सारांश प्रकृति की होती है और इसमें कठोर साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती:
“धारा 125 सीआरपीसी की कार्यवाही में विवाह की स्थिति और संतान के पितृत्व पर न्यायालय की प्राथमिक संतुष्टि ही पर्याप्त होती है… कठोर प्रमाण का मानक आवश्यक नहीं होता, जैसा कि वैवाहिक मामलों में होता है।”
भरण-पोषण की राशि और अंतिम निर्णय
न्यायालय ने यह पाया कि पति एक सरकारी कर्मचारी हैं, जिसकी मासिक आय ₹18,000 से ₹25,000 के बीच है, जैसा कि वेतन पर्ची व साक्षी के बयानों से स्पष्ट हुआ। अतः पत्नी को ₹3,000 और पुत्री को ₹2,000 प्रतिमाह देना अनुचित या अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
मामले का नाम: अवध किशोर साह @ अवधेश साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 262 / 2020